भगवान गणेश की मूर्तियों को मिट्टी से बहुत भक्ति के साथ तराशा जाता है और प्राकृतिक रंगों से चित्रित किया जाता था लेकिन जब वह टूट जाती है तो लोग उसे नदी-समुद्रों में बहा देते हैं। खासकर गणेश चतुर्थी और नवरात्री के दौरान लोग घर में बड़ी-बड़ी देवी-देवताओं की मूर्तियां लाते हैं और फिर उन्हें पानी में विसर्जित कर देते हैं। मगर, इससे नदी का पानी दूषित होता है। मगर, नासिक की रहने वाली 33 साल की तृप्ति गायकवाड़ इसका हल बता रही हैं।
खंडित मूर्तियों को रिसाइकल कर रही तृप्ती
पेशे से वकील तृप्ति अपने सामाजिक संगठन संपूर्णम सेवा फाउंडेशन के माध्यम से खंडित और व्यर्थ की मूर्तियों को रिसाइकल करके झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों के लिए खिलौनों बनाती हैं। वह अब तक करीब 20,000 से अधिक वस्तुओं को पुनर्नवीनीकरण कर चुकी हैं। इससे वह आवारा जानवरों के लिए कटोरे और पक्षियों के घरों भी बनाती हैं।
ऐसे मिली इंस्पिरेशन
तृप्ति बताती हैं, "मेरा घर गोदावरी नदी के पास है। एक दिन, मैं नदी पर थी जब मैंने देखा कि एक आदमी कुछ पुराने फोटो फ्रेम के साथ आता है और उसे नदी में गिरा देता है। मैंने उसे रोका और समझाया कि वह कागज को रीसायकल कर सकता है और लकड़ी को फ्रेम कर सकता है और वह सहमत हो गया। तभी मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं लोगों को इन चीजों को रीसायकल करने में मदद करती हूं तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।"
सोशल मीडिया से मिली मदद
तृप्ति ने सोशल मीडिया के जरिए लोगों से संपर्क करना शुरू किया, ताकि वे किसी भी मूर्ति या फोटो फ्रेम को भेज सकें। एक हफ्ते के अंदर ही उन्हें लोगों का सपोर्ट मिलना शुरू हो गया। आज पुणे, नागपुर और मुंबई से भी लोग उन्हें रिसाइकल करने के लिए सामान भेजते हैं। ये लोग सोशल मीडिया चैनलों और खुले संचार के लिए बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए उनसे करते हैं। रीसाइक्लिंग के लिए दी जाने वाली प्रत्येक वस्तु के लिए कंपनी 50 रुपए का मामूली शुल्क लेती है। इसमें भाड़ा शुल्क के साथ-साथ अन्य प्रक्रियात्मक खर्च शामिल हैं।
धार्मिक भावनाओं का भी रखती हैं ख्याल
पर्यावरण को बचाने के अलावा उनकी टीम यह भी सुनिश्चित करती है कि इस प्रक्रिया में किसी भी धार्मिक भावना को ठेस न पहुंचे। इस कारण से प्रत्येक वस्तु को उपयोगितावादी मूल्य में बदलने से पहले एक पूजा की जाती है। अन्य लोग अक्सर अपसाइकल किए गए बर्तन मांगते हैं जिनका उपयोग वे आवारा या घर पर खिलाने के लिए कर सकते हैं। ये लोग अपनी पसंद से उत्पादों और उनकी डिलीवरी के लिए पैसे दान करते हैं। इसमें 25 स्वयंसेवकों और 8 कर्मचारी उनकी मदद करते हैं।
ऐसे करती हैं रिसाइकल
तृप्ति ने बताया कि वो पहले मूर्तियों को पाउडर के रूप में तोड़ते हैं और फिर प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मदद से उनका इस्तेमाल खिलौने बनाने के लिए करते हैं। लकड़ी के तख्ते उन रीसाइक्लिंग इकाइयों को भेजे जाते हैं जिनके साथ उनका टाई-अप है। कुछ बड़े फ्रेम बर्डहाउस में अपसाइकल किए जाते हैं। थोड़ा-सा सीमेंट व पीओपी का उपयोग करके उनसे आवारा कुत्तों के लिए भी खाने के कटोरे बनाए जाते हैं।