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इंसानियत अभी भी जिंदा है... 51 बच्चों के मां-बाप है ये कपल, मासूमों को गाद लेकर बदल दी उनकी जिंदगी

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 08 Apr, 2024 11:38 AM
इंसानियत अभी भी जिंदा है... 51 बच्चों के मां-बाप है ये कपल, मासूमों को गाद लेकर बदल दी उनकी जिंदगी

महाराष्ट्र में लातूर जिले के एक गांव में एक दंपति ने वंचित बच्चों को शिक्षित करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक आश्रय स्थल बनाया है और अब वे 51 लड़कों और लड़कियों के अभिभावक हैं। गरीब पृष्ठभूमि के बच्चों की स्थिति देखने के बाद शरद और संगीता जरे ने उन्हें शिक्षित करने के लिए कदम उठाए लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि इन बच्चों को अलग-अलग कौशल सिखाने से ही उनका भविष्य सुरक्षित हो सकेगा। 

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दंपति ने औसा तहसील के बुधोड़ा गांव के पास 14 एकड़ भूमि पर अपने संगठन ‘मानुस प्रतिष्ठान' द्वारा संचालित आश्रम ‘माझा घर' की स्थापना क। आश्रम 1.10 एकड़ में बना है, जबकि शेष भूमि का उपयोग खेती के लिए किया जाता है और बच्चों यहां विभिन्न फसलें पैदा करते हैं। शरद जरे ने अपनी एक इंटरव्यू में बताया- ‘‘महात्मा गांधी ने गांवों को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखते हुए 1937 में ‘नई तालीम' की अवधारणा पेश की थी। इसी तरह मैं भी अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं। हम बच्चों को सामग्री का पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण करके मूर्तियां और अन्य वस्तुएं बनाना सिखाते हैं।'' 

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 आश्रम का खर्च कृषि उपज और बच्चों द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प की बिक्री से चलता है। दंपति ने पिछले कुछ साल में विभिन्न पृष्ठभूमियों के 51 बच्चों को गोद लिया है, जिनमें ‘रेड-लाइट' इलाकों के बच्चे, अनाथ बच्चे, गन्ना काटने वालों के बच्चे और आत्महत्या करने वाले किसानों के बच्चे शामिल हैं। जनसंचार में स्नातकोत्तर कर चुके शरद ने कहा कि उनके मन में वंचित बच्चों के लिए काम करने का विचार उस समय आया जब उन्होंने 2016 में पुणे में एक आदिवासी लड़की को रस्सी पर करतब दिखाते हुए देखा। उन्होंने कहा कि ‘‘बच्ची बहुत प्रतिभाशाली थी, लेकिन गरीब परिवार से होने के कारण वह शिक्षा से वंचित थी।'' 

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शरद ने कहा कि अवसरों की कमी के कारण ऐसी पृष्ठभूमि के बच्चे नशीले पदार्थों के इस्तेमाल और अपराध के कुचक्र में फंस जाते हैं। दंपति ने शुरुआत में 2019 में 70 बच्चों के साथ पराली तहसील के वंतकली गांव के पहाड़ी इलाके में एक आश्रम शुरू किया था लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण उन्हें दो साल बाद उसे छोड़ना पड़ा। फिर वे अंबेजोगाई, कटगांव चले गए और पिछले साल मार्च में अंततः लातूर जिले में स्थानांतरित हो गए। आश्रम में इस समय छह से 16 साल की उम्र तक के बच्चे रहते हैं, जिनमें से कुछ का पास के एक स्कूल में दाखिला कराया गया है जबकि बाकी को आश्रम में ही पढ़ाया जाता है। 
 

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