भारत में हर साल 5 सिंतबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है, जो असल में शिक्षकों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। शिक्षक का दर्जा हमेशा से ही पूजनीय रहा है क्योंकि टीचर्स ही बच्चे की जिंदगी में मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है और उन्हें सही राह दिखाता है। दुनियाभर में ऐसी कई शिक्षिकाएं रही हैं जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया है। तो चलिए जानते हैं उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काम किया।
सावित्री बाई फूले
सावित्री बाई फूले को भारत की प्रथम महिला शिक्षक कहा जाता है। वह हमेशा लड़कियों की शिक्षा और उनके हक के लिए खड़ी हुई हैं। जब वह लड़कियों को पढ़ाने जाती थी तो उन पर गोबर, पत्थर, गली-सड़ी सब्जियां तक फैंकी जाती थी। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने लड़कियों को पढ़ाना नहीं छोड़ा। साल 1848 में उन्होंने पुणे में बालिका विद्यालय की स्थापना की और खुद इसमें शिक्षिका बनी। सावित्री बाई फूले और उनके पति ज्योतिराव गोविंदराव फूले ने ऐसी महिलाओं के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह नाम का केयर सैंटर खोला जो गर्भवती होती थी लेकिन किसी वजह से अपने बच्चे को पालने में असमर्थ थी।
कादम्बिनी गांगुली
कादम्बिनी गांगुली भारत की पहली महिला स्न्ताक थी। वह देश की पहली महिला चिकित्सक भी थी। उन्होंने कोयला खदानों में काम करने वाली महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए भी काफी काम किया था।
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की प्रख्यात कवियत्री, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद् थी। उन्होंने 7 साल की उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। उनकी गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के 4 प्रमुख स्तम्भों सुमित्रानंदन पन्त, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है। उन्होंने इलाहाबाद के प्रयोग महिला विद्यापीठ में बतौर प्रिंसीपल और वाइस चांसलर के तौर पर काम किया।
दुर्गाबाई देशमुख
वह एक स्वतंत्रता सेनानी थी जिन्होंने महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलते हुए स्कूलों की स्थापना की और उनमें महीलाओं को चरखा चलाने और कातने की ट्रेनिंग दी थी। आजादी के संघर्ष में लिप्त होने के बावजूद दुर्गाबाई ने अपनी पढ़ाई के लिए वक्त निकाला और बीए व एमए की डिग्रियां हासिल की। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की मैट्रिक परीक्षा के लिए उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना भी की जहां लड़कियों को उस परीक्षा की ट्रेनिंग दी जी सके।