आज हम 21वीं सदी के उस समाज में जी रहे हैं जहां बहुत से लोगों की सोच है कि लड़की और लड़का बराबर हैं। बदलते समाज की इस सोच पर कोई शक नहीं है लेकिन आज भी बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जो खुद के साथ अपराध सह रही हैं। अपने बच्चों के लिए, अपना पेट पालने के लिए वह समाज की सारी बातें सह जाती हैं लेकिन इस बात को कहना गलत होगा कि एक अकेली महिला कुछ नहीं कर सकती। महिला अगर चाहे तो वह अकेले अपने दम पर कोई भी मुक्काम हासिल कर सकती है और ऐसी ही कहानी है जालंधर की एम्बुलेंस ड्राइवर मनजीत कौर की। वो मनजीत कौर जो पिछले 14 सालों से एम्बुलेंस चला रही है लेकिन मनजीत के लिए अपने पैरों पर खड़े होना इतना आसान नहीं था।
मनजीत ने बनाई अलग पहचान
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि समाज में काम को लेकर भी भेदभाव होता है कि यह काम महिला नहीं कर सकती इसे पुरष अच्छे तरीके से कर सकते हैं लेकिन इन सभी बातों को अनदेखा कर मनजीत महिला एंम्बुलेंस ड्राइवर बनी और समाज से अपने पति से लड़कर एक नई और अलग पहचान बनाई। तो चलिए आपको बतातें है मनजीत के वो संघर्ष भरे दिन जिसके बारे में सुन आपकी भी आंखे भर आएंगी।
15 साल की उम्र में हुई शादी
मनजीत कौर की शादी 15 साल की उम्र में हो गई। शादी के बाद मनजीत की जिंदगी और मुश्किल हो गई क्योंकि मनजीत का पति शराबी था। शराबी होने के कारण वह हर बार घर का कोई न कोई सामान बेच देता।
मनजीत को 200 रूपए में बेच डाला
खुद की जरूरतों को पूरा करने के लिए मनजीत का पति घर का सामान तो बेचता ही था वहीं एक दिन उसने मनजीत को भी 200 रूपए में बेच दिया। जब मनजीत को इस बात का पता का चला तो वह अपने घर की छत से कूदकर दूसरों के घर चली गई और खुद को किसी भी तरीके से बचा लिया।
बेटियों को मार दिया
इतना ही नहीं मनजीत के पति ने दोनों बेटियों को भी मार दिया। अपनी डेढ़ महीने की बेटी को उसके पति ने उसे जमीन पर पटक कर मार दिया था। उसके बाद जब वह गर्वभती हुई तो गर्भ में ही 7 महीने की बेटी को पति ने मार मार कर खत्म कर दिया। इसके बाद 1996 में मनजीत के बेटे हुआ।
बेटे को पालने के लिए सीखी एम्बुलेंस
मनजीत कौर की मानें तो ज्यादा पढ़ी लिखी न होने के कारण उसे किसी भी तरह का काम नही आता था। काम के नाम पर सिर्फ घर का ही काम करना जानती थी। इसलिए समझ नही आ रहा था क्या करुं, क्या न करुं। हालात भी ऐसे थे कि मुझे कोई तो काम सीखना ही था, ऐसे में मैंने एम्बुलेंस चलानी सीख ली।
परिवार का छूटा साथ लेकिन...
मनजीत कौर ने बताया की मायके वालों से उसके रिश्ते ख्तम हो गए थे लेकिन मुंह बोले भाई ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया । जिसके बाद धीरे-धीरे मनजीत ने एम्बुलेंस चलानी सीखी। दिन में वह अपना काम करती और रात को कार चलानी सीखती। उसके बाद कुछे पैसे जोड़ कर कूड़े में पड़ी वैन को खरीद कर सही करके उसके साथ काम करना शुरू किया। उसके बाद मैंने अपनी एम्बुलेंस चलानी शुरु की। कुछ समय बाद किसी कारण से मैंने अपनी एम्बुलेंस बेच दी। उसके बाद से मैं जोहल अस्पताल में एम्बुलेंस चलाने के काम कर रही हूं। हालांकि मनजीत को चाहे पढ़ना लिखना नहीं आता हो लेकिन वह साइन बोर्ड से हर रास्ते को याद रखती है।
इस काम के बाद लोगों ने दिया सम्मान
मनजीत कौर ने बताया एम्बुलेंस चलाने के बाद उन्हें इस काम से काफी सम्मान मिला। मनजीत कौर की मानें तो यह शव सिर्फ शव नहीं है बल्कि यह उनके घर की रोजी रोटी है। और लोग इस काम के लिए उन्हें एक्स्ट्रा पैसे ही देते हैं। इतना ही नहीं मनजीत कौर पिछले 14 सालों से एम्बुलेंस चला रही है। अपनी एम्बुलेंस में मरीज और डेड बॉडी को छोड़ने के लिए यूपी, बंगाल, कोलकाता, मुंबई आदि कई राज्यों का सफर कर चुकी है। एम्बुलेंस चलाना न केवल इनका शौंक था बल्कि मजबूरी भी बन गई।
मनजीत कौर के इस जज्बे को हम सलाम करते हैं।