छोटे बच्चों का शरारतें करना लाजमी है। मगर, कई बार वो इस कद्र परेशान करने लगते हैं कि पेरेंट्स उन्हें समझने के लिए चिल्लाने या गुस्सा करने लगते हैं, जोकि गलत है। माता-पिता का गुस्सा देखकर बच्चा शांत तो हो जाता है लेकिन इससे उसके मन और साइकोलॉजी (मनोविज्ञान) पर बुरा असर पड़ता है। ऐसी परवरिश को हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग (Helicopter Parenting) कहते हैं, जिसके कई तरह के नुकसान हैं। चलिए आज हम आपको बताते हैं कि बच्चों से गुस्से व चिल्लाकर बात क्यों नहीं करनी चाहिए...
बच्चे का स्वभाव हो जाएगा दब्बू
पेरेंट्स के बार-बार ऐसा करने से बच्चे का कॉन्फिडेंट्स कम हो सकता है। अगर आप अपने बच्चे को दब्बू नहीं बनाना चाहते तो उनसे प्यार से बात करें।
सीख सकता है झूठ बोलना
अगर आप बच्चे को छोटी-छोटी बातों के लिए डांटेगे या टोकेंगे तो उसे झूठ बोलने की बुरी आदत पड़ सकती है। यही नहीं, इसके कारण बच्चा आपसे पर्सनल बातें भी छिपाने लग जाएगा, जिसका परिणाम गंभीर हो सकता है।
मां-बाप और बच्चे के रिश्ते पर असर
बार-बार चिल्लाकर, डांटकर या गुस्से से बात करने पर बच्चे के मन में आपकी नकारात्मक छवि बन जाती हैं। ऐसे में वह आप पर भरोसा करने की बजाए दोस्तों प दूसरे लोगों के करीब हो जाता है।
बच्चे का मानसिक विकास हो सकता है प्रभावित
इससे ना सिर्फ बच्चे के मानसिक विकास पर असर पड़ता है बल्कि उसकी याददाश्त भी कमजोर हो जाती है। यही नहीं, बच्चे अपने फैसले भी खुद नहीं कर पाते। कई बार तो रोक-टोक या नजर रखने से वो चालाकी भी सीख जाते हैं, जोकि सही नहीं है।
स्वभाव में आक्रामकता
कई बार बार-बार गुस्सा, चिल्लाना और डांटने से बच्चे का स्वभाव आक्रामक हो जाता है और वो चिड़चिड़े रहने लगते हैं। धीरे-धीरे आपके गुस्से के खिलाफ बच्चे के अवचेतन मन में बनता जाता है, जिससे उसके तेवर बागी हो जाते हैं।