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नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा: कोरोना संक्रमित रह चुके लोगों में बढ़ रहा इस गंभीर बीमारी का खतरा

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 20 Nov, 2025 04:50 PM
नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा: कोरोना संक्रमित रह चुके लोगों में बढ़ रहा इस गंभीर बीमारी का खतरा

 नारी डेस्क: कोरोना महामारी खत्म भले ही होती दिख रही हो, लेकिन इसका असर अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। कई लोग कोविड से ठीक होने के महीनों बाद भी थकान, ब्रेन फॉग, सांस फूलना और शरीर दर्द जैसी समस्याओं से जूझते हैं। इसी हालत को लॉन्ग कोविड कहा जाता है। अब वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को समझने में महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

स्टडी में क्या पाया गया?

नई रिसर्च में वैज्ञानिकों ने लॉन्ग कोविड मरीजों के खून में दो तरह के बदलाव देखे हैं

माइक्रोक्लॉट्स (खून के बेहद छोटे-छोटे थक्के)

ये खून के अंदर बनने वाले छोटे-छोटे प्रोटीन के गुच्छे होते हैं। माइक्रोक्लॉट्स सबसे पहले कोविड मरीजों के खून के सैंपल में देखे गए थे। नई स्टडी में पता चला है कि लॉन्ग कोविड मरीजों में माइक्रोक्लॉट्स की मात्रा सामान्य लोगों की तुलना में कई गुना ज्यादा है। ये क्लॉट्स खून में लंबे समय तक टिके रहते हैं और शरीर में सूजन तथा थकान जैसे लक्षण पैदा कर सकते हैं।

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 न्यूट्रोफिल सेल्स में बदलाव (इम्यून सिस्टम से जुड़ा परिवर्तन)

न्यूट्रोफिल सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो इंफेक्शन से लड़ने के लिए जिम्मेदार होती हैं। रिसर्च में पाया गया कि लॉन्ग कोविड मरीजों के न्यूट्रोफिल असामान्य रूप से अपना डीएनए बाहर निकालकर धागेनुमा जाल जैसी संरचनाएं बना रहे हैं।

इन्हें कहा जाता है NETs (Neutrophil Extracellular Traps)।

ये NETs शरीर में इंफेक्शन से लड़ने का काम तो करते हैं, लेकिन जब ये ज्यादा बनने लगते हैं तो शरीर में सूजन और खून के थक्कों की समस्या बढ़ने लगती है।

कैसे बन रहा है लॉन्ग कोविड का कारण?

वैज्ञानिकों के अनुसार, माइक्रोक्लॉट्स और NETs के बीच होने वाली ये खास प्रक्रिया ही लॉन्ग कोविड का कारण बन रही है। रिपोर्ट में बताया गया माइक्रोक्लॉट्स, NETs के अत्यधिक निर्माण को बढ़ावा देते हैं। NETs, माइक्रोक्लॉट्स को और मजबूत बनाते हैं। इससे शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया जो थक्कों को तोड़ती है, कमजोर हो जाती है। नतीजतन, ये थक्के खून में लंबे समय तक बने रहते हैं और शरीर के विभिन्न हिस्सों में समस्याएँ पैदा करते रहते हैं।

स्टडी में यह भी पाया गया कि

लॉन्ग कोविड मरीजों के माइक्रोक्लॉट्स आकार में भी बड़े हैं। इससे खून का प्रवाह बाधित हो सकता है और लगातार थकान, दर्द व सांस फूलने जैसे लक्षण बने रह सकते हैं। 

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एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?

स्टडी के लेखक एलैन थिएरी का कहना है "माइक्रोक्लॉट्स और NETs के बीच चल रही यह प्रक्रिया शरीर में ऐसी प्रतिक्रियाएँ पैदा करती है जो नियंत्रण से बाहर होकर लॉन्ग कोविड की वजह बनती हैं।"

रिसर्चर रिसिया प्रिटोरियस बताती हैं

NETs की अधिकता से माइक्रोक्लॉट्स टूटते नहीं हैं और खून में जमा रहते हैं। इससे खून की नलियों में बाधा और सूजन जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। यह स्टडी Journal of Medical Virology में प्रकाशित हुई है और इसे लॉन्ग कोविड को समझने में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

इस रिसर्च से साफ होता है कि कोविड से ठीक हो जाना मतलब बीमारी का पूरी तरह खत्म होना नहीं है। लॉन्ग कोविड के लक्षणों के पीछे खून में बनने वाले माइक्रोक्लॉट्स और इम्यून सिस्टम में होने वाले बदलाव जिम्मेदार हो सकते हैं। भविष्य में डॉक्टर इस आधार पर लॉन्ग कोविड का बेहतर इलाज विकसित कर सकते हैं।  

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