16 फरवरी को गुरु रविदास जी की 645वीं जयंती मनाई जाएगी। गुरु रविदास जी रैदास और रोहिदास के नाम से भी प्रसिद्ध है। इतिहासकारों अनुसार, गुरु रविदास का जन्म सन 1398 ई. में तो कुछ लोग सन 1450 को मानते हैं। मगर कई लोगों का कहना है कि गुरु जी का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था। ऐसे में हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन गुरु जी की जयंती मनाई जाती है। भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संत कवि कहलाने वाले रविदास जी ने कई भक्ति गीतों और छंदों की रचना की। इसके साथ ही इनकी रचना हर किसी पर गहरी छाप डालती है। ऐसे में हर किसी को उनके दोहों से सीख लेनी चाहिए। चलिए गुरु जी की जयंती के खास अवसर हम आपको उनके कुछ दोहे व इसका अर्थ बताते हैं...
चलिए आज हम आपको रविदास जी के कुछ प्रसिद्ध दोहे व उनका हिंदी अर्थ बताते हैं...
. रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच। नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।
अर्थ- रविदास जी कहते हैं कि सिर्फ जन्म की वजह से कोई नीच नहीं बन जाता हैं। असल में, मनुष्य के कर्म उसे नीच बनाते हैं।
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. कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा। वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
अर्थ- इस दोहे में रविदास जी ने कहा हैं कि राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमात्मा के अलग-अलग नाम है। साथ ही वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही भगवान की भक्ति करने का गुणगान किया गया है। इसके साथ ही सभी ईश्वर की भक्ति करने के साथ सदाचार का पाठ सिखाते हैं।
. मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थ- रविदास जी के इस दोहे का अर्थ हैं कि अगर आपका मन पवित्र है तो भगवान खुद आपके दिल में निवास करते हैं।
. हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस। ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
अर्थ- रविदास जी इस दोहे में कहते हैं कि हरी यानि भगवान के समान बहुमूल्य हीरे को छोड़ कर अन्य की आशा करने वालों को अवश्य ही नरक में स्थान मिलेगा। इसका मतलब है कि प्रभु भक्ति को छोड़ कर इधर-उधर भटकना बेकार माना जाता है।
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. रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।
अर्थ- रविदास जी का कहना है कि जिस दिल में दिन-रात राम यानि भगवान का वास रहता है। ऐसा भक्त स्वयं भी राम जी के समान माना जाता है। राम-नाम ऐसी माया है कि इसे दिन-रात जपने वाले को ना ही कभी क्रोध आता है और ना ही उसपर कभी कामभावना हावी होती है।
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