भगवान शिव और माता पार्वती का जीवन ऐसा है जिसमें न केवल प्यार-सम्मान बल्कि एक-दूसरे के प्रति समर्पण देखने को भी मिलता है। उनका वैवाहिक जीवन सच्चे प्रेम का प्रतीक है, ऐसा ही कुछ महाशिवरात्रि से पहले देखने को मिला। यहां पार्वती ने अपने पति शिव की ना सिर्फ जान बचाई बल्कि जोड़ों के लिए मिसाल पैदा की है।
दरसअल ‘लीवर सिरोसिस' (एक प्रकार का यकृत रोग) से ग्रस्त बिहार के 29 वर्षीय एक व्यक्ति को पत्नी द्वारा अंगदान करने से एक नया जीवन मिला है। डॉक्टरों ने बताया कि चुनौती यह थी कि मरीज शिव का रक्त समूह 'बी पॉजिटिव' था और उसके भाई-बहनों में किसी का भी यह रक्त समूह नहीं था। वैसे तो उसकी 21 वर्षीय पत्नी अपना यकृत दान करने को इच्छुक थी, लेकिन उसका भी रक्त समूह 'ए पॉजिटिव' था।
छह महीने पहले पार्वती ने पाया कि उसका पति बिस्तर पर बेहोश पड़ा है। अस्पताल ले जाने पर पता चला कि शिव को ‘लीवर सिरोसिस' रोग हो गया है जो आखिरी चरण में है फलस्वरूप उन्हें यकृत मस्तिष्क विकार हो गया है (जिसमें व्यक्ति बेहोश हो जाता है।) शिव छह सदस्यों के परिवार में एकमात्र कमाऊ सदस्य था। घर में दंपत्ति के अलावा बुजुर्ग मां-बाप और दो बच्चे हैं।
डॉक्टरों ने बताया कि बिहार एवं दिल्ली में कई अस्पतालों का चक्कर काटने के बाद वे लोग एसजीआरएच आये। एसजीआरएच के मुख्य यकृत प्रतिरोपण सर्जन डॉ. नैमिष मेहता ने बताया कि शिव को) यकृत प्रतिरोपण कराने और उपयुक्त अंगदान दाता को ढूंढने को कहा गया । डॉक्टरों के सामने चुनौती थी कि शिव और उसकी पत्नी के रक्तसमूह अलग-अलग थे। इसलिए,परिवार को तब ‘रक्त समूह असंगत प्रतिरोपण का परामर्श दिया गया जिसे समुचित पूर्व ऑपरेशन तैयारी के साथ किया जा सकता है।
उसकी पत्नी पार्वती यकृत दान करने को तैयार थी और उसका रक्तसमूह ए पॉजिटिव था। उसकी जांच की गयी और वह अंगदान के लिए उपयुक्त पायी गयी।'गभग 12 घंटे तक चली सर्जरी के बाद मरीज का लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। सर्जरी के बाद शिव ने कहा कि सच्चे अर्थों में मेरी पत्नी ने मेरी जान बचाने में देवी पार्वती की वास्तविक भूमिका निभाई है। मैं जीवन भर उनका ऋणी हूं। यह मेरे लिए सबसे अच्छा तोहफा है।