दिवाली की रात को देवी लक्ष्मी व भगवान गणेश जी की पूजा करने की परंपरा है। उसके बाद लोग दीयों व पटाखों को जलाकर इस त्योहार का आनंद मनाते हैं। इस दिन कुछ लोग ताश खेलने की भी परंपरा निभाते हैं। यह रिवाज असल में, सदियों से चलता आ रहा है। ऐसे में बहुत-से लोग इस दिन पर इसे खेलने का आनंद मनाते हैं। मगर बहुत कम लोग इसे खेलने के पीछे का रहस्य जानते हैं। तो आइए हम आपको दिवाली की रात ताश खेलने से जुड़ी मान्यता के बारे में बताते हैं...
पौराणिक कथाओं के अनुसार
कहा जाता है कि, दिवाली की रात को भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ पूरी रात जाग कर ताश का खेल खेला था। इससे ही दोनों का प्यार और भी गहरा हुआ। ऐसे में इस दिन पर ताश खेलने से पति-पत्नि व घर के सदस्यों के रिश्ते मजबूत होते हैं।
लोक कथाओं के अनुसार
साथ ही लोककथा के अनुसार, इस शुभ दिन पर अपने दोस्तों व करीबियों के साथ ताश खेलने से सुख-समृद्धि व आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। इसी वजह से लोग इस दिन पर शगुन के तौर पर ताश को खेलने लगे थे। कहा जाता है कि इस खेल में जिसकी जीत होती है। उसे जीवन भर अन्न व धन की कोई कमी नहीं होती है। ऐसे में आज भी लोग इस परंपरा को मानते हैं। वे दिवाली की रात को इस खेल को खेलना पसंद करते हैं।
शगुन के तौर पर ही खेलें
इस खेल को खेलने पर एक की जीत तो दूसरे को हार का मुंह देखना पड़ता है। ऐसे में जीत की चाह में व्यक्ति बार-बार ताश की बाजी लगाने लगता है। ऐसे में जुआ खेलने की लत लग जाती है, जिससे इंसान अपना सब कुछ गवां सकता है। इसलिए इसे सिर्फ शगुन के तौर पर ही खेलें।
इस बात को भी रखें याद
जहां एक ओर ताश को खेल का संबंध भगवान शिव व माता पार्वती से जुड़ा है। वहीं दूसरी ओर इसका संबंध महाभारत से भी माना जाता है। पांडवों की जुआ खेलने की लत के चलते उन्हें अपना राज-पाठ छोड़ कर वनवास जाने के साथ द्रौपदी के चीरहरण का सामना करना पड़ा। ऐसे में इसे दिवाली की रात को सिर्फ शगुन के तौर पर ही खेलें। इसे हमेशा खेलने की आदत न डालें।