झारखंड की बुधनी मंझियाईन ने 85 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया है। बीते शुक्रवार उन्होंने अंतिम सांस ली। जिन्हें नहीं पता, बता दें देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ बुधनी का खास नाता रहा है। पंडित नेहरू ने ना सिर्फ दामोदर वैली कॉरपोरेशन के पंचेत डैम और हाईडल पावर प्लांट का उद्घाटन बुधनी के हाथों करवाया था, बल्कि उनपर नेहरू के पत्नी होने के भी आरोप लग चुके हैं। इसके चलते वो पिछले 70 सालों से अपने समाज के लोगों का बहिष्कार झेल रही थीं। बुधनी की पूरी कहानी अजीबोगरीब है। ये सब शुरु हुआ 6 दिसंबर 1958 की तारीख को, जब पीएम नेहरू दामोदर वैली कॉरपोरेशन वाले डैम का उद्धाटन करने के लिए झारखंड के धनबाद जिले में गए थे। तय हुआ कि उनका स्वागत वहां की अदिवासी समाज की लड़की बुधनी करेगी।
आदिवासी समाज ने इस वजह से किया बुधनी का बहिष्कार
उस समय 15 साल की बुधनी ने डैम के निर्माण के दौरान मजदूर के तौर पर भी काम किया था। पारंपरिक आदिवासी परिधान में सजी बुधनी ने पीएम नेहरू का स्वागत करते हुए उनके गले में माला डाली। पीएम ने भी बुधनी का सम्मान करते हुए अपने गले से माला उतारकर उसके गले में डाल दी। इसके बाद पनबिजली प्लांट का उद्घाटन भी बुधनी के हाथों बटन दबाकर कराया गया। लेकिन बुधनी को पीएम से मिला ये सम्मान ही उनके बहिष्कार की वजह बना। दरअसल, संथाल आदिवासी समाज में एक परंपरा है, जिसके हिसाब से अगर कोई स्त्री और पुरुष एक- दूसरे को माला पहनते हैं तो इसे शादी मान ली जाती है।
आदिवासी समाज ने इस घटना के बाद पंचायत बुलाई और बुधनी को नेहरू की पत्नी ऐलान कर दिया। वहीं क्योंकि नेहरू संथाल- आदिवासी समाज से नहीं थे तो बुधनी को भी उस समाज से बेदखल कर दिया गया। पंचायत के इस फैसले के बाद बुधनी के लिए घर- परिवार- समाज में कोई जगह नहीं रही। उनका पैतृक गांव भी पंचेत डैम के डूब क्षेत्र में आ गया था और उनका परिवार विस्थापित होकर दूसरी जगह जा चुके थे।
सुधीर नामक व्यक्ति संग रहे रिश्ते
सुधनी को डीवीसी में नौकरी तो मिली , लेकिन साल 1962 में उसे अज्ञात कारणों से नौकरी से निकाल दिया गया। कहा जाता है कि ये आदिवासी समाज के आंदोलन की वजह से हुआ। इसके बाद बुधिया काम की तलाश में बंगाल चली गईं, जहां उनकी मुलाकत सुधीर दत्ता नामक शख्स से हुई। सुधीर उन्हें अपने घर ले आए और दोनों पत्नी- पत्नी की तरह रहने लगे। हालांकि दोनों की कभी शादी नहीं की । उनकी रत्ना नाम की बेटी भी हुई। अब उसकी भी शादी हो गई है। लेकिन इतने सालों के बाद भी आदिवासी समाज ने बहिष्कार वापस नहीं लिया था।
पिछले कुछ दिनों से बुधिया की तबीयत खराब चल रही थी, जिसके बाद उन्हें पंचेत हिल हॉस्पिटल में दाखिल करवाया गया। बीते शुक्रवार(17 नवंबर) को उन्होंने यहीं दम तोड़ दिया। उनके आखिरी वक्त में उनकी बेटी उनके साथ थी।