22 NOVFRIDAY2024 12:03:22 PM
Nari

पढ़ी-लिखी होना कोई जुर्म नहीं, महिला को नौकरी के लिए  नहीं कर सकते Force : कोर्ट

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 11 Jun, 2022 06:18 PM
पढ़ी-लिखी होना कोई जुर्म नहीं, महिला को नौकरी के लिए  नहीं कर सकते Force : कोर्ट

 बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि एक महिला को आजीविका कमाने के लिए महज इसलिए नौकरी करने को विवश नहीं किया जा सकता कि वह पढ़ी-लिखी है। उच्च न्यायालय ने उस व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने अलग रह रही अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश देने वाले अदालत के आदेश को चुनौती दी है।

PunjabKesari
न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ पुणे में पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए व्यक्ति की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही है। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि एक महिला के पास ‘‘काम करने या घर पर रहने का विकल्प’’ है, भले ही वह योग्य हो और शैक्षणिक डिग्री धारक भी हो। न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, ‘‘हमारे समाज ने अभी यह स्वीकार नहीं किया है कि गृहणियों को योगदान देना चाहिए। काम करना महिला की पसंद है। उसे काम पर जाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। महज इसलिए कि उसने स्नातक तक पढ़ाई की है, इसका यह मतलब नहीं है कि वह घर पर नहीं बैठ सकती।’’

PunjabKesari

न्यायमूर्ति ने कहा- आज मैं इस अदालत में न्यायाधीश हूं। मान लीजिए, कल को मैं घर पर बैठ सकती हूं। क्या तब भी आप कहेंगे कि मैं एक न्यायाधीश के लिए योग्य हूं और मुझे घर पर नहीं बैठना चाहिए?’’ व्यक्ति के वकील ने दलील दी कि पारिवारिक अदालत ने ‘‘अनुचित’’ रूप से उनके मुवक्किल को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया है जबकि उनसे अलग हो चुकी पत्नी स्नातक पास है और उसमें काम करने तथा आजीविका कमाने की क्षमता है।

PunjabKesari

वकील अजिंक्य उडाने के जरिए दायर याचिका में व्यक्ति ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी अलग रह रही पत्नी के पास अभी आय का स्रोत है लेकिन उसने अदालत से यह बात छुपायी है। याचिकाकर्ता ने पारिवारिक अदालत के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें उसे अपनी पत्नी को हर महीने 5,000 रुपये का गुजारा भत्ता और 13 साल की बेटी की देखभाल के लिए 7,000 रुपये देने का निर्देश दिया गया। बेटी अभी अपनी मां के साथ रह रही है।

Related News