पहले बच्चे के जन्म के बाद नए माता-पिता को बहुत सारी जानकारी दी जाती है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सलाह बच्चों की नींद की स्थिति के बारे में होती है, कि क्या बच्चे को पीठ के बल सुलाना वास्तव में सबसे अच्छा है, या वह अपने पेट के बल सो सकते है? ऐसे में आज हम आपकों बताते हैं कि नवजात बच्चों का पेट के बल सोना ठीक है या नहीं?
एक नवजात शिशु के जीवन के पहले 12 महीने बेहद नाजुक़ होते हैं। उनमें विकसित होने वाले कई संक्रमणों, एलर्जी और अवस्थाओं के अलावा, उन्हें अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम यानि SIDS (Sudden infant death syndrome) का खतरा भी रहता है। माना जाता है कि पेट के बल सोना SIDS के कारणों में से एक है। आईए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से-
क्या शिशु का पेट के बल सोना सेफ है?
सिद्धांत के अनुसार, शिशु के पहले 12 महीने बेहद नाजुक होते हैं इसलिए बच्चे को पेट के बल नहीं सोना चाहिए क्योंकि जब वे पेट के बल सोते हैं तो वे अपनी खुद के छोड़े हुए सांस में दोबारा सांस लेते हैं। इस पुनरावर्तित हवा में ऑक्सीजन की कमी होती है, जिससे फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इससे SIDS का खतरा बढ़ जाता है। इस प्रकार, पेट के बल सोने वाले बच्चे में ऑक्सीजन की कमी के कारण मृत्यु हो सकती है। डॉक्टरों द्वारा यह अनुसंशा की जाती है कि माता–पिता को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि शिशु अपने पेट के बल ज्यादा देर तक न सो पाएं।
बच्चे पेट के बल कब सो सकते हैं-
‘द अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स’ के अनुसार, SIDS के कारण होने वाली मृत्यु की संख्या में 50% की गिरावट दर्ज की गई है। इनके अनुसार, नवजात शिशुओं को कम से कम 1 साल के लिए अपनी पीठ पर सोने के लिए निर्देशित किया जाता है। इससे बच्चे की श्वसन प्रणाली मजबूत और विकसित होती है। ऐसे में वे अधिक ऑक्सीजन में सांस ले सकते हैं, इस प्रकार SIDS के जोखिम कम हो जाता हैं। इसलिए ऐसा मनना है कि एक साल बाद भी बच्चे लंबे समय तक अवधि के लिए अपने पेट के बल न सोएं।
अगर बच्चा पेट के बल सोना पसंद करता है तो क्या करें?
जन्म के चार महीनें बाद बच्चा उलटने-पलटने लगता है। एक बार जब बच्चा पलटना शुरू कर देता है, तो बच्चों को ज्यादा निगरानी की जरूरत पड़ती है। शिशु के 1 साल तक कोशिश करें कि उसे किसी भी क़ीमत पर पेट पर न सोने दे, क्योंकि एक नवजात शिशु का शरीर पूर्ण रूप से ऑक्सीजन संचलन नहीं कर पाता। जब शिशु अपने पेट के बल सोते हैं तो अत्यधिक कार्बन डाइऑक्साइड शिशु के शरीर में वापस चली जाती है जो उसके लिए घातक साबित हो सकता है। यदि आपका शिशु अपनी पीठ के बल नहीं सो पाता है, तो तुरंत बाल चिकित्सक से संपर्क करें।
बच्चे का करवट लेकर सोना भी हो सकता है घातक-
बच्चे का करवट लेकर सोना भी घातक साबित हो सकता है क्योंकि इसकी वजह से उसके पेट के एक हिस्से पर ज्यादा दबाव पड़ता है और सडन इंफैंट डेथ सिंड्रोम का खतरा भी बढ़ जाता है।
जानिए, कैसी होनी चाहिए शिशु की स्लीपिंग पोजीशन-
नरम गद्दे पर न सुलाएं-
बच्चे को ज्यादा नरम गद्दे पर नहीं सुलाना चाहिए। इसके लिए आप हल्के सख़्त गद्दे का उपयोग करें ताकि शिशु को वह सहायता मिले जो उसे चाहिए। उसे किसी तकिए, वॉटर बेड, सोफे या किसी अन्य नरम सतह पर न रखें क्योंकि यह उस हवा की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है जिसमें वह सांस लेता है।
बच्चे के पालने के अंदर कुछ भी न रखें-
विशेषज्ञ के अनुसार, आप अपने बच्चे को सोते समय पालने के अंदर कुछ भी न रखें।
बच्चे को सीने तक ही ब्लैंकेट दें-
सोते समय बच्चे को सीने तक ही ब्लैंकेट से ढकें। उसका सिर या चेहरा ढ़कने की गलती न करें क्योंकि इसकी वजह से बच्चे का दम घुट सकता है। इसके अलावा, बच्चे को माता-पिता के बिस्तर पर सुलाने की गलती न करें। इससे भी बच्चे के दम घुटने की संभावना बढ़ जाती है।
सोते समय हल्के कपड़े पहनाएं-
सोते समय बच्चे को हल्के कपडे पहनाने चाहिए। ज्यादा भारी या गर्म कपड़े पहनाने से बचें। क्योंकि सोते समय बच्चे अपनी मर्जी से पोजीशन बदलते हैं। कभी-कभी ऐसा करना बच्चे के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
बच्चे के सोते समय इतना होना चाहिए तापमान-
बच्चे के सोते समय आमतौर पर कमरे के तापमान को 23 और 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रखने की सलाह दी जाती हैं।
जब बच्चा जाग रहा हो तब उसे पेट के बल लिटा दें-
शिशुओं के लिए पेट के बल सोने की सलाह नहीं दी जाती है, लेकिन जब बच्चा जाग रहा हो तो उसे पेट के बल लिटाने के लिए एक कठोर सतह पर चटाई का उपयोग करें। सर्वे के अनुसार, शिशु जब जाग रहे होते हैं तो उन्हें अपने पेट के बल लेटने की ज़रूरत होती है इससे उन्हें अपने ऊपरी शरीर को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। लेतिन ध्यान रखें कि इस गतिविधि के लिए अपने बच्चे पर ज़्यादा दबाव न डालें। उसे लगातार केवल 3 से 5 मिनट तक ही पेट के बल लिटाएं ।