एक एक्सीडेंट या किसी हादसे के कारण हाथ-पैर खो जाए तो व्यक्ति का हौसला ही टूट जाता है। वहीं जो व्यक्ति बचपन से ही चलने-फिरने में असमर्थ हो उसकी तो जीने की इच्छा ही खत्म हो जाता है लेकिन कहते हैं ना कि... हौंसले और उम्मीद का नाम ही जिंदगी है। इसकी जीती-जाती मिसाल है अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल खिलाड़ी गीता चौहान... जो चल नहीं सकती लेकिन इनके हौंसले के आगे मुसीबतें भी हार मान गई।
गीता देश के उन तमाम बच्चों और युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो अपनी शारीरिक कमजोरी के चलते हार मान लेते हैं। इंटरनेशनल व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्लेयर गीता ने महज 6 साल की उम्र में पोलियो के कारण अपने पैर खो दिए लेकिन उनका कुछ कर दिखाने का जज्बा कम नहीं हुआ।
लोग मुझसे दूर भागते थे: गीता
गीता कहती हैं कि मेरे पिता का मानना था कि मुझे घर पर रहना चाहिए लेकिन मैं पढ़ना चाहती है। मुझे देश के लिए कुछ करना था। कई स्कूलों ने तो मुझे एडमिशन देने से भी मना कर दिया। लोग मुझसे दूर भागते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे वो बीमार हो जाएंगे लेकिन मैंने हार नहीं मानी और आगे बढ़ती रहती।
डिप्रेशन में चली गई थी गीता
भले ही गीता को उनके पिता का सपोर्ट ना मिला हो लेकिन उनकी मां व बहन हर कदम पर उनके साथ रहीं। एक समय तो ऐसा भी आया जब गीता डिप्रेशन में चली गई थी। इसके कारण उन्होंने अपना घर भी छोड़ दिया और दोस्तों से मदद ली।
दोस्तों की मदद से शुरू किया टेक्सटाइल का बिजनेस
उन्होंने कॉलेज के दौरान कई नौकरियां भी की, ताकि वह पैसे जमा कर सकें। इसके अलावा वह फाइनेंस की जॉब भी कर चुकी हैं, जिसके बाद उन्होंने बिजनेस का रुख कर लिया था। दोस्तों की मदद से उन्होंने टेक्सटाइल का काम शुरु किया और आज मुंबई में उनकी एक छोटी-सी दुकान भी है।
बास्केटबॉल से मिली नई दिशा
वह अपना टेक्सटाइल का बिजनेस कर रहीं थी कि तभी उन्हें उम्मीद की एक किरण दिखी। उन्होंने व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम को ज्वाइन की और खेलना शुरू किया। हालांकि शुरूआत में यह सब उनके लिए मुश्किल भरा रहा। गीता ने बताया, 'खेल के लिए शरीर के ऊपरी हिस्से कंधे, रीढ़ की हड्डी और घुटनें मजबूत होने चाहिए थे। प्रैक्टिस के दौरान मुझे पीठ में तेज दर्द होता था लेकिन मुझे देश के लिए कुछ करना था इसलिए मैं प्रेक्टिस पर फोकस करती रही।'
खेलते वक्त भी आईं दिक्कतें
गीता ने बताया कि बॉस्केटबॉल खेलते समय भी उन्हें काफी दिक्कतें झेलनी पड़ी। अगर कोई खिलाड़ी मैदान में गिर जाता तो कोच उन्हें उठाने के लिए भी आ सकते थे। हमें खुद ही गिरकर उठना पड़ता था। प्रैक्टिस के दौरान अगर मैं गिरती तो दोस्तों की मदद से उठ जाती लेकिन मैदान में मेरा लक्ष्य सिर्फ खेलना ही होता है और मैं सिर्फ उसका लुफ्त उठाती हूं।
जीत चुकीं है कई मेडल्स
बता दें कि गीता अपने बेहचरीन प्रर्दशन से कई मेडल जीत चुकी हैं। इसके साथ ही वह 2019 में थाईलैंड में पैराओलंपिक क्वालिफायर खेलने गई टीम की सदस्य भी रह चुकी हैं। सिर्फ बॉस्केटबॉल ही नहीं वह टेनिस और मैराथन में भी अपनी प्रतिभा दिखा चुकीं है। राष्ट्रिय स्तर पर व्हीलचेयर टेनिस खेलने वाली गीता कई इंटरनेशनल देशों में भारत को प्रीजेंट कर चुकी हैं। आज गीता ना सिर्फ अपने परिवार बल्कि पूरे देश का नाम रोशन कर रही है।
गीता कहती हैं,'चाहे जिंदगी में लाख मुसीबतें आ जाएं लेकिन कभी उम्मीद मत खोना।' उनकी कहानी आज के युवाओं के लिए वाकई प्रेरणा है।