रेप से जुड़े सख्त कानून हों या महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बना कठोर कानून, महिला की एक शिकायत पर पुरुष को तुरंत ही दोषी मान लिया जाता है। लेकिन कई बार बेगुनाहों को उस गुनाह की सजा मिल जाती है जो उन्होंने कभी किया ही नहीं। उच्च न्यायालयों में महिलाओं के हक की आवाज उठते तो कई बार सुनी है लेकिन कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पुरुषों के हक के लिए बड़ा फैसला लिया है
पत्नी पर लगा अत्याचार करने का आरोप
कलकत्ता हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है पुरुष को भी मानसिक क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक लेने का अधिकार है। कोर्ट का कहना है कि अगर पत्नी मानसिक रूप से अत्याचार करती है, प्रताड़ित करती है। साथ ही पति को मां-बाप से अलग रहने के लिए मजबूर करती है और अलग रहने की कोई ठोस वजह नहीं बताती है तो पति को तलाक लेने का हक़ है।
अपील की अपील हुई खारिज
हाई कोर्ट ने एक महिला की अपील को यह कहकर खारिज कर दिया कि अपने पति को उसके माता-पिता और परिवार से अलग करने का प्रयास क्रूरता के बराबर था। दरअसल साल 2009 में पश्चिमी मिदनापुर की एक फैमिली कोर्ट ने पति को पत्नी की क्रूरता के आधार पर तलाक लेने की मंजूरी दे दी थी। दरअसल पति पेशे से एक टीचर था, परिवार में बच्चों के अलावा उसके मां-बाप भी रहते हैं। पत्नी चाहती थी कि वह अपने मां- बाप से अलग हो जाए।
अपने फैसले दूसरे पर थोपने का अधिकार नहीं: कोर्ट
पति का आरोप है कि जब उसकी सरकारी नौकरी लगने लगी तो पत्नी ने उसके खिलाफ क्रिमिनल केस फाइल कर दिया। इसके चलते वह नौकरी से हाथ धो बैठा। हालांकि पति के आरोपों को झूठा बताते हुए महिला ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को कलकत्ता हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की जांच के बाद खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा- पत्नी का बिना किसी वजह के पति पर दबाव बनाना कि वह अपने मां-बाप से अलग रहे। यह एक प्रकार से क्रूरता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बार बार पति से अलग घर लेकर रहने की जिद करना। एक तरह से क्रूरता के दायरे में ही आएगा। अदालत ने कहा कि किसी को अपने फैसले दूसरे पर थोपने का अधिकार नहीं है।