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अर्श से फर्श पर... कभी लाल बत्ती की गाड़ी में घूमने वाली जूली आज बकरियां चराने को मजबूर

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 18 Oct, 2020 02:07 PM
अर्श से फर्श पर... कभी लाल बत्ती की गाड़ी में घूमने वाली जूली आज बकरियां चराने को मजबूर

कहते हैं समय राजा को रंक और भिखारी को राजा बना सकता है। समय कब पलट जाए कोई कुछ नहीं कह सकता। ऐसा ही कुछ हुआ मध्यप्रदेश, शिवपुर जिले में रहने वाली आदिवासी जूली के साथ। कभी लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमने वाली जूली मध्य प्रदेश, शिवपूरी जिले की पूर्व अध्यक्ष रह चुकी हैं लेकिन आज वो गुमनामी के अंधकार में बकरियां चराकर अपने परिवार का गुजारा कर रही हैं।

कौन है जूली?

जूली पहले मजदूरी का कारण किया करती थी लेकिन फिर कोलारस के पूर्व विधायक राम सिंह यादव ने जूली को साल 2005 में जिला पंचायत सदस्य चुना था। पंचायत का सदस्य बनने के बाद शिवपुरी के पूर्व विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने उन्हें सीधा जेल का पंचायत अध्यक्ष ही बना दिया। उन्होंने 5 साल इस जिम्मेदारी को संभाला, जिसके कारण उनका दर्जा बढ़ गया।

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कभी मंत्री की तरह लाल बत्ती की गाड़ी में घूमती थी जूली

एक समय ऐसा था जब जूली मंत्रियों की तरह लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमा करती थी। हर कोई उन्हें आदर-सम्मान के साथ मैडम कहकर बुलाता था। मगर, बुरे वक्त में हर किसी ने उनसे मुंह मोड़ लिया है। आज वह सड़कों पर बकरियां चरा रही हैं। देखते ही देखते समय ऐसा बदल गया कि अपने परिवार का पेट भरने के लिए जूली यह काम करने को मजबूर हो गई हैं।

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क्यों बकरियां चराने पर हुई मजबूत

5 सालों का कार्यभार संभालने के बाद जूली को एक बार हार का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्हें पंचायत से निकाल दिया गया। पद और नाम छिन जाने के बाद जूली को परिवार का पेट भरना था, जिसके लिए उन्होंने मजदूरी के काम को ही सही समझा। आज उनके हालात इतने खराब है कि लोग उन्हें पहचानने से भी कतराते हैं। यहीं नहीं, वक्त की मार के चलते जूली को टपरी में रहना पड़ रहा है।

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सरकारी जमीन पर झोपड़ी बनाकर रह रही जूली

इंदिरा आवास योजना के तहत जूली को कुटीर स्वीकृत हुई लेकिन वो भी भ्रष्टाचार के चलते छिन गई। अब वह सरकारी जमीन झोंपड़ी बनाकर रह रही हैं, जिसकी हालत भी कुछ खास सही नहीं है। बकरी चराने उन्हें हर महीने 50 रु मिलते हैं, जिससे वह परिवार कता पालन-पोषण कर रही हैं। जब बकरियां नहीं होती तो वह खेत में मजदूरी करती हैं। कई बार खेती का काम ना मिलने पर वह गुजरात जाकर मजदूरी करती है।

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