आज 25 अक्टूबर को देश भर के राज्यों में दशहरा का पर्व मनाया जा रहा है। लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के इस त्योहार को बहुत धूम धाम से मनाते हैं। अलग-अलग धर्मों में इसे मनाने के अलग-अलग रीति रिवाज हैं। ज्यादातर दशहरा देश के हर कोने में मनाया जाता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जगह बताते हैं जहां इस त्योहार को लोग नहीं मनाते हैं।
हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के परतापुर स्थित एक गांव की जहां आज तक लोगों नें दशहरा नहीं मनाया है। इतना ही नहीं यहां अगर दशहरा की बात भी की जाए तो लोग उदास हो जाते हैं।
क्यों नहीं मनाया जाता दशहरा?
दरअसल मेरठ से तीस किलोमीटर दूर स्थित गगोल गांव की इस बात पर चाहे लोग विश्वास नहीं करते हैं लेकिन यह सच्चाई है। खबरों की मानें तो 1857 में मेरठ में आजादी की क्रांति की लहर में गांव के नौ लोगों को दशहरे के दिन ही फांसी दी गई थी।
आज भी मौजूद है वो पेड़
जिस पेड़ पर उन लोगों को फांसी दी गई थी वह आज भी वहीं मौजूद हैं। इस पीपल के पेड़ के नीचे समाधि बनाई गई और हर साल दशहरे के दिन लोग उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दी जाती है।
नहीं जलाया जाता चूल्हा
इस घटना को चाहे बहुत समय बीत गया हो लेकिन आज भी लोगों के घाव भरे नहीं है। इस घटना को याद कर आज भी गांव का हर एक बच्चा बुजुर्ग इसे सुन दुखी हो जाता है। इतना ही नहीं इस दिन लोगों के घर चूल्हा तक भी नहीं जलाया जाता है और पूरा गांव इस दिन शोक में डूब जाता है।
आज तक नहीं मिला शहीद का दर्जा
गांव वालों की मानें तो जिन लोगों को फांसी दी गईं उन्हें आज तक शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है। वह लोग सरकार से भी कईं दफा इसकी गुहार लगा चुके हैं। हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्टस में यह भी कहा जा रहा है कि इस पर्व के दिन बेटा पैदा होने वाले घर पर दशहरा मनाने की छूट दी जाती है कि अगर दशहरे वाले दिन कोई बच्चा पैदा होता है तो दशहरा मना लिया जाता है।