हम में से कई लोग कुत्ते को पालते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि इनका मंदिर बनावकर पूजा की जाए। जी हां, सुनने में शायद अजीब लगे पर छत्तीसगढ़ में सच में ऐसा मंदिर है। इस अनोखे मंदिर का नाम कुकुरदेव है। इससे मंदिर को लेकर कुछ अजीब सी मान्यताएं भी हैं।
सावन के दिनों में भक्तों का लगता है इस मंदिर में जमावड़ा
ये मंदिर छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के खपरी गांव में स्थित है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों तरफ कुत्ते की मूर्तियां लगी हुई हैं। इस मंदिर के अंदर शिवलिंग के बगल में काले कुत्ते की मूर्ति स्थापित है। सावन के दिनों में यहां पर भक्तों का जमावड़ा लगता है। यहां आने वाले भक्त भोले नाथ के साथ- साथ कुत्ते की भी पूजा- अर्चना करते हैं।
कुकुरदेव मंदिर बनाने के पीछे ये है कहानी
कुकुरदेव मंदिर बनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। सदियों पहले एक बंजारा अपने परिवार और एक कुत्ते के साथ इस गांव में आया था। बंजारा बहुत गरीब था और गांव में अकाल पड़ने की वजह से वह परेशान रहने लगा था। उसके परिवार के पास खाने के लिए कुछ नहीं था। ऐसे में बंजारे ने वहां के साहूकार से कर्ज ले लिया। लेकिन बंजारा समय पर कर्ज वापस नहीं कर सका। ऐसे में साहूकार ने गरीब बंजारे को खूब खरी- खोटी सुनाई। दुखी होकर रोता हुआ बंजारा अपने घर पहुंचा और अपने वफादार कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखने का फैसला किया।
कुत्ते ने दिखाई वफादारी
इसके बाद एक दिन साहूकार के घर पर चोर हो गई। चोरों ने साहूकार का सारा कीमती सामान चुरा लिया। कुत्ता ये सब देख रहा है। जब साहूकार को चोरी का पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ पर कुत्ता उसे वहां ले गया, जहां चोरों ने कीमती सामान छुपाया था। साहूकार ने गड्ढा खोदा तो उसे सारा सामान मिल गया। साहूकार कुत्ते की वफादारी से बहुत खुश हुआ और उसे वापस से बंजारे के पास भेजने का फैसला किया।
बंजारे ने पीट- पीटकर मार डाला कुत्ते को
साहूकार ने बंजारे के नाम एक चिट्ठी लिखकर कुत्ते के गले में बांध दी। जब कुत्ता बंजारे के पास पहुंचा तो उसे लगा वो साहूकार के पास से भागकर आया है। इस बात से नाराज बंजारे ने कुत्ते को तब तक पीटा जब तक वो मर नहीं गया। क्रोध शांत होने पर बंजारे ने कुत्ते के गले में लटकी चिट्ठी को पढ़ा तो हैरान रह गया। उसे अपनी गलती का बहुत पछतावा हो रहा था। उसके बाद उसने उसी जगह पर कुत्ते को दफना दिया और स्मारक बनवा दिया। बाद में इस स्मारक को मंदिर का रूप दे दिया है। इसी मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।