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अपने आप प्रकट हुई थी बांके बिहारी की मूर्ति, जानिए इस मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें

  • Edited By neetu,
  • Updated: 09 Aug, 2020 03:12 PM
अपने आप प्रकट हुई थी बांके बिहारी की मूर्ति, जानिए इस मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें

भगवान श्रीकृष्ण के दुनिया भर में बहुत से मंदिर स्थापित है। ऐसे में उन मंदिरों से कोई न कोई मान्यता भी जुड़ी है। ऐसे में आज हम आपको श्रीकृष्ण के बांके बिहारी मंदिर के बारे में बताता है। भगवान श्रीकृष्ण का बांके बिहारी मंदिर मथुरा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर वृंदावन में स्थापित है। बात अगर वृंदावन की करें तो यहां की हर गली में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की गाथा सुनने को मिलती है। यहीं केरमण रेती पर राधारानी  और श्रीकृष्णा का बांके बिहारी मंदिर स्थापित है। इस मंदि में दुनिया भर से लोग श्रीकृष्ण के मनमोहक और अलौकिक स्वरूप के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद लेने आते हैं। इस मंदिर से बहुत सी रोचक बातें जुड़ी है दो शायद सभी को नहीं पता है। तो चलिए आज हम आपको बांके बिहारी मंदिर से संबंधित दस बड़ी व रोचक बातें बताते हैं...

तानसेन के गुरू ने की थी स्थापना

माना जाता है कि बांकेबिहारी के इस मंदिर की स्थापना दुनिया के प्रसिद्ध गायक तानसेन के गुरू स्वामी हरिदास ने की थी। 

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भक्त स्वामी हरिदास ने दिया था बांके बिहारी नाम 

बात अगर श्रीकृष्ण को बांकेबिहारी नाम देने की करें तो उनको यह  नाम उनके भक्त स्वामी हरिदास ने दिया था। मगर यहां हम आपको बता दें, भगवान श्रीकृष्ण की हर मुद्रा को बांके बिहारी नहीं कहा जाता है। असल में, तीन कोण पर झुकी हुई मुद्रा वाले श्रीकृष्ण को ही  बांके बिहारी के नाम से पूजा जाता है। तीन कोण का अर्थ है श्रीकृष्ण का अपने होठों पर बांसुरी लगाना, कदम्ब के वृक्ष से कमर टिका कर खड़े होना और एक पैर के ऊपर या फंसाए हुई मुद्रा में खड़े हुए श्रीकृष्ण को ही बांके बिहारी के नाम से पुकारा जाता है। 

अपने आप प्रकट हुई थी बांकेबिहारी की मूर्ति

तानसेन के गुरू स्वामी हरिदास भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्तों में से एक थे। वे प्रसिद्ध धार्मिक निधिवन में भजन, कीर्तन करके श्रीकृष्ण की भक्ति किया करते थे। माना जाता है कि राधा कृष्ण जी इस वन में आकर उन्हें दर्शन देते थे। एक दिन वृंदावन के लोगों ने गुरू स्वामी से विनती की थी कि वे भी राधा कृष्ण के दर्शन करने के इच्छुक हैं तब उनकी बात सुनकर हरिदास जी ने अपनी सच्ची भक्ति से राधा कृष्ण की आराधना की और वृंदावन के लोगों की कही  बात उनसे कही। ऐसे में उनकी बात सुनकर गुरू स्वमी के ध्यान व पूजन के बाद जब उन्होंनें अपनी आंखें खोलीं तो बांकेबिहारी की मूर्ति को अपने सामने पाया था।

मंदिर की स्थापना होनने से पहले रहस्मयी निधिवन में होती थी पूजा

जब गुरू स्वामी को भगवान जी की मूर्ति मिली तो उन्होंने उसे निधिवन में भी स्थापित किया। साथ ही रोजाना उनकी पूजा व सेवा करने लगे। उसके बाद जब मंदिर का निर्माण कार्य समाप्त हुआ जब उन्होंने लोगों द्वारा दर्शन करने के लिए बांकेबिहारी की उस मूर्ति को मंदिर में स्थापित कर दिया था। 

राधा कृष्ण के सम्मिलित रूप में है बांके बिहारी की मूर्ति

बांकेबिहारी की यह अलौकिक मूर्ति राधा कृष्ण का विग्रह यानी सम्मिलित रूप में बनी हुई है। इसी वजह से बांके बिहारीजी की इस मूर्ति के श्रृंगार में आधी मूर्ति पर महिला और आधी मूर्ति पर पुरुष का श्रृंगार होता है। 

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मूर्ति के सामने से हर दो मिनट में लगाया जाता है पर्दा

मान्यता है कि बांकेबिहारी की छवि को लगातार देखने से भक्त श्रीकृष्ण की भक्ति में वशीभूत हो उनके साथ ही चला जाता है। इसके लिए मंदिर में उनकी मूर्ति के आगे एक पर्दा लगा है जो हर 2 मिनट में हिलता है। ताकि कोई भी बांकेबिहारी को एक टक न देख सके। 

बांकेबिहारी की मूर्ति की आंखों से आंखें मिलाते हैं भक्त

भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों से सच्चे मन से प्रेम चाहते हैं। कहा जाता है कि भक्त भी उनकी इस मूर्ति के दर्शन करके खुद को रोक न पाने के कारण वशीभूत हो जाते हैं। इसलिए इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तजन भगवान की मूर्ति में आंखें मिलाकर उन्हें निहारते हैं। माना जाता है कि उनकी मूर्ति में इतना आकर्षण है कि लोग उन्हें देखते ही उनकी ओर खींचे चले जाते हैं। साथ ही उनकी आंखों से अपने आप आंसू बहने लगते हैं।

विहार पंचमी के रूप में मनाया जाता है प्राकट्य दिवस

कहा जाता है कि बांके बिहारी की यह मूर्ति मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को निधिवन में स्थित विशाखा कुण्ड से उत्पन्न हुई थी। इसलिए हर साल इस दिन यानि प्राकट्य तिथि को विहार पंचमी के रूप में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही इस शुभ दिन पर वृंदावन में और भी कई धार्मिक आयोजन किए जाते है। साथ ही विहार पंचमी के शुभ अवसर पर सभी भक्तों को चरणामृत जी जगह पंचामृत दिया जाता है। 

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हर साल जन्माष्टमी पर ही होती है मंगला आरती

कहा जाता है कि यहां पर हर साल जम्नाष्टमी के दिन पर ही मंगला आरती होती है। माना जाता है कि इस शुभ व पवित्र दिन में बांके बिहारी जी के दर्शन करने वाला सौभाग्यशाली होता है। 

अक्षय तृतीया पर की जाती है बांकेबिहारी की चरण दर्शन

माना जाता है कि जब अक्षय तिथि होती है सिर्फ उसी दिन भक्तों को बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते है। मान्यता है कि भगवान जी के इन चरण-कमलों के जो भी दर्शन करता है उसका बेड़ा पार हो जाता है। उसके जीवन की समस्त परेशानियां दूर जिंदगी खुशहाली से भर जाती है। 

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