22 NOVFRIDAY2024 12:27:00 AM
Nari

कथा के बिना अधूरा Ahoi Ashtami का व्रत, जान लें शुभ मुहूर्त व पूजा विधि भी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 26 Oct, 2021 03:37 PM
कथा के बिना अधूरा Ahoi Ashtami का व्रत, जान लें शुभ मुहूर्त व पूजा विधि भी

त्योहारों का मौसम अभी खत्म नहीं हुआ है। नवरात्रि और करवा चौथ के बाद एक और महत्वपूर्ण उपवास आता है अहोई अष्टमी व्रत। हिंदू धर्म में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है, जो माताओं द्वारा मनाया जाता है। इस दौरान महिलाएं परंपरागत रूप से संतान के अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए उपवास रखती हैं। वहीं कुछ महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए भी इस उपवास को करती हैं।

कब मनाई जाएगी अहोई अष्टमी?

अहोई अष्टमी कार्तिक के हिंदू महीने में मनाई जाती है, जो सितंबर और अक्टूबर के बीच आती है। करवा चौथ के चार दिन बाद और दिवाली से सात से आठ दिन पहले का दिन है। इस वर्ष, यह 28 अक्टूबर को पड़ रहा है। इस दिन को अहोई अष्टमी के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह "अष्टमी" या चंद्रमा की घटती अवधि के आठवें दिन पड़ता है।

PunjabKesari

अहोई अष्टमी मुहूर्त का समय

अष्टमी तिथि शुरू - दोपहर 12:49 बजे, 28 अक्टूबर, 2021
अष्टमी तिथि समाप्त - 2:09 बजे, 29 अक्टूबर, 2021
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त - शाम 5:02 से शाम 6:17 बजे तक, 28 अक्टूबर 2021
शाम को तारे देखने का समय - शाम 5:25 बजे, 28 अक्टूबर 2021
अहोई अष्टमी पर चंद्रोदय - रात 10:57 बजे, 28 अक्टूबर, 2021

कैसे रखा जाता है व्रत

. इस व्रत में माताएं सूर्योदय से पहले उठकर मंदिर में पूजा-अर्चना करती हैं और फिर व्रत का संकल्प लेती हैं। सुबह अहोई मां या अहोई भगवती की तस्वीर के सामने अनाज, मिठाई और कुछ पैसे चढ़ाए जाते हैं।
. यह व्रत तब तक चलता है जब तक आकाश में तारे दिखाई नहीं देते यानि महिलाएं तारे देखकर व्रत खोलती हैं। हालांकि कुछ महिलाएं चंद्रोदय के बाद भी व्रत खोलती हैं।
. फिर अहोई माता के चित्र के आगे चढ़ाए गए अनाज, मिठाई और पैसे को बच्चों में बांट दिया जाता है।

क्यों कहा जाता है अहोई आठें?

उत्तर भारत में प्रसिद्ध इस व्रत को अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह अष्टमी तिथि (माह का आठवां दिन) के दौरान होता है। करवा चौथ के समान अहोई अष्टमी के दिन भी महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं।

PunjabKesari

यहां पढ़िए अहोई माता की व्रत कथा...

पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे व एक बेटी थी और सभी विवाहित थे। दिवाली के मौके पर साहूकार की बेटी मायके आई थी। तभी घर लीपने के लिए साहूकार की सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लाने गई तो वह भी अपने भाभीयों संग चली गई। जहां उसने मिट्टी काटना शुरू किया वहां साही (एक प्रकार का जीव) अपने साथ अपने बच्चों के साथ रहती थी। तब लड़की की खुरपी स्याहु के एक बच्चे को लग गई और वह मर गया।

तब साही ने क्रोध में कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। तब साहूकार की बेटी अपनी भाभियों से कोख बंधवाने की विनती करती हैं और छोटी भाभी ननद के बदले कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के बच्चे होने के सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की मृत्यु होने के बाद जब वह पंडित से इसका कारण पूछती है तो वह उसे सुरही गाय की सेवा करने को कहते हैं।

PunjabKesari

उसकी सेवा से प्रसन्न होकर गाय एक इच्छा मांगने को कहती है और साहूकार की बहू माता को सारी कहानी बताकर कोख खुलवाने की विनती करती है। गाय माता उसे साथ लेकर सात समुद्र पार कर साही माता के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम कर रहीं होती है तभी अचानक साहूकार की बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और तभी वो सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां खून बिखरा देखकर छोटी बहू को कोसने लगती है और चोंच मारती है। जब छोटी बहू उसे सच्चाई बताती है तो गरूड़ पंखनी खुश होकर उसे साही का पता बता देती है।

छोटी बहू वहां पहुंचकर साही की सेवा में लग जाती है जिससे प्रसन्न होकर वह उसे सात पुत्र व बहू होने का आशीर्वाद देती है और साथ ही अहोई माता का व्रत करने के लिए कहती है। छोटी बहू घर जाकर वैसा ही करती है, जिससे उसकी मनोकामना पूरी होती है।

पूजा के बाद सास के पैर छूकर आशीर्वाद लें। इस तरह अहोई माता का विधि-विधान पूजन करने से मां हर किसी की मनोकामना पूरी करती है।

Related News