
भारत की सभी जगहों पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव यानि जन्माष्टमी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं, जन्माष्टमी पर दही-हांडी उत्सव मनाने की परंपरा भी सदियो से चलती आ रही है। इस उत्सव में युवा टोलियां बनाकर ऊंचाई पर बंधी दही-हांडी फोड़ते हैं। हालांकि कोरोना के चलते इस बार लोग दही-हांडी उत्सव नहीं मना पाएंगे लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि जन्माष्टमी पर क्यों फोड़ी जाती है दही हांडी...
श्रीकृष्ण को क्यों कहा जाता है 'माखन चोर'?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कंस के पापों का अंत करने के लिए इसी दिन भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में धरती पर जन्म लिया था। श्रीकृष्ण बचपन से ही नटखट स्वभाव के थे। नन्हे बाल गोपाल को माखन, दही और दूध इतना पसंद था कि वह गांवभर का माखन चोरी कर खा जाते थे। उनकी शरारतों से तंग आकर एक बार माता यशोदा ने उन्हें खंभे से बांध दिया लेकिन फिर भी वह माखन तक पहुंच गए। बस फिर क्या था श्रीकृष्ण 'माखन चोर' के नाम से मशहूर हो गए।

दही-हांडी और श्रीकृष्ण का संबंध
पौराणिक कथाओं की मानें तो बाल गोपाल की शरारतों से तंग आकर वृन्दावन की महिलाएं मथे हुए माखन की मटकी को ऊंचाई पर टांग देती थी, ताकि श्रीकृष्ण उस तक पहुंच ना पाएं। मगर, नटखट कृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और उस मटकी को तोड़कर माखन खाते थे। यही से दही हांडी का चलन शुरू हो गया। भगवान श्रीकृष्ण को माखनचोर और दही हांडी फोड़ने वाले को गोविंदा कहा जाने लगा।

यहां की दही-हांडी है सबसे मशहूर
गुजरात, द्वारका, महाराष्ट्र की दही-हांडी पूरे भारत में सबसे मशहूर है। यहां हर गली-मुहल्ले में दहीं हांडी की प्रतियोगिता रखी जाती है। यहां मटकी में दही के साथ घी, बादाम और सूखे मेवे भी डाले जाते हैं, जिसे युवाओं की टोली मिलकर तोड़ती है। वहीं लड़कियों की एक टोली गीत गाती हैं और उन्हें रोकने की कोशिश करती हैं।
'उरीदी' नाम से मशहूर तमिलनाडु की दही-हांडी
तमिलनाडु में दही-हांडी उत्सव को 'उरीदी' भी कहा जाता है। यहां लोग हफ्तों पहले ही ग्रुप बनाकर दही-हांडी की प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं। हांडी फोड़ने वाले को मिठाइयां व उपहार दिए जाते हैं।

हालांकि कोरोना वायरस के चलते इस बार आप दही-हांडी उत्सव का मजा नहीं ले पाएंगे लेकिन आप घर पर परिवार के साथ इसे सेलिब्रेट कर सकते हैं।