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जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को क्यों लगाया जाता है '56 भोग'?

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 11 Aug, 2020 01:34 PM
जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को क्यों लगाया जाता है '56 भोग'?

जन्माष्टमी के दिन ना सिर्फ कृष्ण भगवान की पूजा की जाती है बल्कि उन्हें 56 भोग भी लगाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण को 56 तरह की व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे 'छप्पन भोग' कहा जाता है लेकिन अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि 56 भोग क्यों लगाया जाता है। चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाने के पीछे क्या कहानी हैं और क्या होते हैं 56 भोग।

 

यहां से शुरू हुई '56 भोग' की परंपरा

दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से ब्रेजवासियों को बचने के लिए गोवर्धन पर्वत को लगातार 7 दिन तक सिर पर उठाया था। इतना ही नहीं, इन 7 दिनों में श्री-कृष्ण भूखे प्यासे भी रहे। इसके बाद गांव वालों ने उन्हें 7 दिनों और 8 पहर के हिसाब से 7X8=56 तरह के व्यंजन बनाकर खिलाएं, जहां से '56 भोग' परंपरा शुरु हुई।

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56 सखियां हैं 56 भोग

मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधिकाजी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं, जिसपर कमल की 3 परतों में 56 पंखुड़ियां होती हैं। प्रथम परत में 8, दूसरी में 16 और तीसरी में 32 पंखुड़ियां होती हैं, और हर पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी के साथ बीच में भगवान विराजते हैं। यहां 56 संख्या का यही अर्थ है। 56 भोग से भगवान श्रीकृष्ण अपनी सखियों संग तृप्त होते हैं।

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जब गोपियों ने श्रीकृष्ण को ने भेंट किए 56 भोग

श्रीमद्भागवत की कथा अनुसार, कृष्ण की गोपिकाओं ने उनको पति रूप में पाने के लिए 1 महीने तक यमुना में सुबह में न केवल स्नान किया बल्कि कात्यायिनी मां की पूजा-अर्चना भी की। तब श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी। तब व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के पर गोपिकाओं ने 56 भोग का आयोजन करके भगवान श्रीकृष्ण को भेंट किया।

छप्पन भोग का गणित

छह रस या स्वाद यानि कड़वा, तीखा, कसैला, अम्ल, नमकीन और मीठा के मेल से 56 तरह के व्यंजन बनाए जा सकते हैं और इन्हीं का मतलब है 56 भोग। छप्पन भोग का मतलब है वह सभी प्रकार का खाना जो हम भगवान को अर्पित कर सकते हैं।

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क्या हैं 56 भोग में शामिल व्यंजनों के नाम?

भात, सूप (दाल), प्रलेह (चटनी), सदिका (कढ़ी), दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), सिखरिणी (सिखरन), अवलेह (शरबत), बालका (बाटी), इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), त्रिकोण (शर्करा युक्त), बटक (बड़ा), मधु शीर्षक (मठरी), फेणिका (फेनी), परिष्टाश्च (पूरी), शतपत्र (खजला), सधिद्रक (घेवर), चक्राम (मालपुआ), चिल्डिका (चोला), सुधाकुंडलिका (जलेबी), धृतपूर (मेसू), वायुपूर (रसगुल्ला), चन्द्रकला (पगी हुई), दधि (महारायता), स्थूली (थूली), कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), खंड मंडल (खुरमा), गोधूम (दलिया), परिखा, सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), दधिरूप (बिलसारू), मोदक (लड्डू), शाक (साग), सौधान (अधानौ अचार), मंडका (मोठ), पायस (खीर), दधि (दही), गोघृत, हैयंगपीनम (मक्खन), मंडूरी (मलाई), कूपिका, पर्पट (पापड़), शक्तिका (सीरा), लसिका (लस्सी), सुवत, संघाय (मोहन), सुफला (सुपारी), सिता (इलायची), फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल।

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