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दूसरे दिन करें तप-शक्ति की देवी मां ब्रह्माचरिणी की पूजा, जानिए पूजा मंत्र और विधि

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 07 Oct, 2021 05:32 PM
दूसरे दिन करें तप-शक्ति की देवी मां ब्रह्माचरिणी की पूजा, जानिए पूजा मंत्र और विधि

दूसरे दिन नव शक्ति के दूसरे स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी माता ज्ञान से भरी हैं, जिनके एक हाथ में माला और एक कमंडल है। वह भक्तों को शाश्वत ज्ञान और आनंद का आशीर्वाद देती है। ब्रह्मचारिणी का सौम्य और शांतिपूर्ण रूप मन में शांति और शांति लाता है और लोगों में काफी आत्मविश्वास पैदा करता है। मान्यता है कि मां की अराधना से तप, शक्ति ,त्याग ,सदाचार, संयम और वैराग्य का वरदान मिलता है।

ब्रह्मचारिणी की जन्म कथा

स्वेत वस्त्र पहने हुए मां दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बांए हाथ में कमण्डल से सुशोभित है ब्रह्मचारिणी का अर्थ है अविवाहित और युवा। इसके अलावा देवी के शब्द का अर्थ - 'ब्रह्म यानि तपस्या और चारिणी यानि आचरण' भी है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, वह माता पार्वती का ही रुप हैं, जिन्होंने हिमालयराज के घर जन्म लिया। देवर्षि नारद के कहने पर माता ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए हजारों सालों का कठोर तप किया। इसलिए उनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा।

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1 हजार वर्ष तक फल-फूल, टूटे हुए बिल्व पत्र खाएं और 100 सालों तक केवल जमीन पर रहीं। खुले आकाश के नीचे बारीश और धूप को सहन करते हुए भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। जब भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए और हजारों सालों तक निर्जल और निराहार रह कर तप किया। इसी कारण उनका नाम अपर्णा पड़ गया। चूंकि कठिन तप के बाद मां ब्रह्मचारणी बहुत कमजोर हो हो गई थी इसलिए सभी देवताओं ने उनकी सहारना की और मनोकामना का वरदान भी दिया।

मंगल ग्रह की अधिपति

शास्त्र कहते हैं कि देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह की अधिपति हैं। वह सभी भाग्य की दाता है और वह अपने भक्तों के सभी मानसिक कष्टों को दूर करके उनके गहरे दुखों को दूर करती है। मंगल दोष और कुंडली में मंगल की प्रतिकूल स्थिति से होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए इनकी पूजा की जाती है।

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधिः

. सुबह प्रातःकाल स्नान करे साफ कपड़े पहनें और फिर मंदिर को साफ करें। पंचामृत से देवी को स्नान करवाकर देवी को लाल कपड़े वाली लकड़ी की चौकी पर आसन ग्रहण करवाएं। उन्हें फूल, अक्षत, रोली, सिंदूर, चंदन अर्पित करें।
. देवी को प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन, पान, सुपारी चढ़ाएं। मां को शक्कर या शक्कर से बनी चीजों का प्रसाद चढ़ाएं। आप चाहे तो मां को प्रसाद भी हरे रंग का चढ़ा सकते हैं।
. देवी ब्रह्मचारिणी को हरा रंग पसंद है इसलिए नवरात्रि के दूसरे दिन हरे रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।
. मां ब्रह्मचारिणी का पसंदीदा फूल चमेली व अड़हुल का फूल है इसलिए मां को यही फूल चढ़ाएं। इससे परम करुणामयी माता का आशीर्वाद मिलेगा। घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें।
. हाथों में एक फूल लेकर "इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलु, देवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा" मंत्र का जाप करें।

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माता ब्रह्मचारिणी के मंत्रः

या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा

मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

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