हर किसी ने समाज में पुरुष को ही बोलबाला सुना होगा। ऐसे में घर, व्यापार, शादी आदि से जुड़े हर तरह के फैसले भी मर्दों द्वारा ही लिए जाते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि दुनिया में कुछ ऐसी जनजातियां है, जहां पर महिलाओं का अधिकार है? जी हां, यही सच है। आज महिला दिवस के अवसर पर हम आपको कुछ ऐसी जनजाति के बारे में बताते हैं, जहां पर पुरुष नहीं बल्कि औरतों का दबदबा है। तो चलिए जानते हैं कुछ ऐसी ही जनजातियों के बारे में...
इम्फाल की ईमा मार्केट
जहां आदमी के बिना कुछ भी संभव नहीं माना जाता है। ऐसे में मणिपुर, इम्फाल की 'ईमा मार्केट' या 'मदर्स मार्केट' में महिलाएं ही बाजार चलाती है। यहां पर पुरुषों को सामान खरीदने की नहीं बल्कि बेचने की मनाही है। यह एशिया का सबसे बड़ा बाजार है, जहां पर करीब 4,000 महिलाएं काम करती है। मणिपुर की भाषा में ईमा का मतलब होने से 'मदर्स मार्केट' भी कहा जाता है। ऐसे में इस बाजार में केवल शादीशुदा औरतें ही व्यापार कर सकती है। बात मार्किट की करें तो यहां पर आपको सब्जी, कपड़े से लेकर जरूरत का सभी सामान आसानी से मिलता है।
मोस्यू जनजाति, चीन
चीन व तिब्बत के कुछ इलाकों पर महिलाओं का शासन चलता है। मोस्यू जनजाति की ये महिलाएं घर व बिजनेस को अपने मुताबिक चलाती है। ऐसे में हर तरह का फैसला ये पुरुष की तरह निभाती है। यहां तक कि इस जनजाति की महिलाओं को शादी से पहले किसी भी मर्द से साथ रहने का हक है। साथ ही वे अपनी मर्जी से अपने पार्टनर की तलाश कर सकती है। बात आदमियों की करें तो वे अपनी महिला मित्र या फिर जानवरों के तबेले में रहते हैं। महिलाओं का बोलबाला होने से इस जनजाति के बच्चे भी पिता की जगह मांओं को नाम से जाने जाते हैं।
गरासिया जनजाति, राजस्थान
इस जनजाति में लड़का-लड़की बिना शादी किए ही लिव इन रिलेशन में रहने की अनुमति है। ऐसे में महिलाएं अपनी मर्जी से किसी भी पुरुष के साथ रह सकती है। साथ ही शादी करने का फैसला महिलाओं द्वारा लिया जाता है। यहां के लोग खेती पर निर्भर होने के कारण आर्थिक तौर पर मजबूत होने के बाद ही शादी से जुड़ा फैसला लेते हैं। माना जाता है कि लिव इन में रहने के लिए लड़के का परिवार लड़की वालों को पैसे देते हैं। साथ ही बात शादी तक पहुंचने पर शादी में होने का सारा खर्च लड़के के परिवार की ओर से किया जाता है।
गारो, मेघालय
गारो जनजाति के लोग मेघालय, नागालैंड व असम के जिलों जैसे कार्बी आंगलोंग, गोलपारा आदि में रहते हैं। इसके अलावा ये लोग कूच बिहार, जलपाईगुड़ी, बर्धमान और पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर जिलों में भी निवास करते हैं। इन्हें गारो के अलावा मैंडे भी कहा जाता है। माना जाता है कि यहां पर घर की संपति पर मां व बेटी का हक होता है। ऐसे में मां के बाद बेटी को वारिस माना जाता है। इसके विपरीत घर के पुरुषों का किसी भी काम व संपति में कोई हक नहीं होता है। ना ही वे घर व संपति के जुड़ा कोई फैसले ले सकते हैं। यहां तक की शादी के बाद लड़के को अपनी पत्नी के घर में रहने के साथ उसके सारे फैसले मानने पड़ते हैं। ऐसे में महिलाएं किसी भी तरह की कोई सामाजिक बंधनों में बंध कर नहीं बल्कि स्वतंत्र रहती है।