धरती पर जब भी पाप और अधर्म बढ़ते हैं, भगवान को खुद इन चीजों को कम करने के लिए धरती पर अवतार लेना पड़ता है। ऐसा ही अवतार भगवान विष्णु ने धरती पर लिया था। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के ही अवतार थे। श्रीकृष्ण विष्णु भगवान के 8वें अवतार थे। मथुरा की राजकुमारी देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रुप में उन्होंंने धरती तल पर अवतार लिया था। श्रीकृष्ण ने जन्म से ही बहुत चमत्कार किए थे। उनके जन्म से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो मानव को सीख देते हैं। जन्माष्टमी श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रुप में मनाई जाती है। इस बार जन्माष्टमी 18 और 19 अगस्त को मनाई जाएगी। तो चलिए आपको बताते हैं जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है...
जन्माष्टमी का इतिहास
भारत में हर त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी भी उन त्योहारों में से एक है। हिंदू धर्म के अनुसार, कंस के अत्याचारों को सहते हुए उनकी बहन देवकी ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को उन्होंने अपनी आठवीं संतान के रुप में श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। स्वंय भगवान विष्णु ने पृथ्वी को कंस के अत्याचारों से बचाने के लिए धरती पर अवतार लिया था। इन्हीं मान्यताओं के अनुसार, हर साल भाद्रपद की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है।
जन्माष्टमी का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण त्रिदेवों( ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक भगवान विष्णु का अवतार हैं। कृष्ण जी का आशीर्वाद पाने के लिए हर साल कई लोग व्रत रखते हैं। व्रत रखकर मध्य रात्रि को विधि विधान से श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। भजन कीर्तन करते हैं और धूमधाम से श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिरों में भी काफी रोनक होती है।
कैसे मनाया जाता है श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव?
जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए भक्त व्रत करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, लड्डू गोपाल जी का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था। इसलिए इस दिन जन्माष्टमी की तिथि को मध्यरात्रि में मौजूद लड्डू गोपाल की प्रतिमा का दोबारा से जन्म भी करवाया जाता है। जन्म करवाने के बाद उन्हें स्नान करवाकर अच्छे वस्त्र पहनाएं जाते हैं। फूल अर्पित करके धूप-दीप जलाकर पूजा की जाती है। कान्हा जी को भोग के रुप में दूध, दही, मक्खन लगाया जाता है। मक्खन श्रीकृष्ण को बहुत पसंद है। श्रीकृष्ण को भोग लगाने के बाद यह प्रसाद सारे लोगों में बांटा जाता है।
दही हांडी का महत्व
जन्माष्मटी के दिन दही हांडी का आयोजन भी किया जाता है। खासकर गुजरात और महाराष्ट्र में इस दिन का खास महत्व है। दही हांडी का इतिहास भी बहुत दिलचस्प है। कान्हा जी बचपन में बहुत ही नटखट थे, पूरे गांव में अपनी शरारतों के लिए जाने जाते थे। उन्हें मक्खन, दही बहुत ही पसंद था। मक्खन उन्हें इतना पसंद था कि वह अपने दोस्तों के साथ उसे चोरी करने भी जाते थे। कान्हा जी से माखन बचाने के लिए महिलाएं मटकी को किसी ऊंची जगह पर लटका देती थी। लेकिन फिर भी कान्हा जी अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाकर लटकी हुई मटकी तक पहुंच ही जाते थे। कान्हा जी की इन्हीं शरारतों को याद करने के लिए जन्माष्टमी में माखन ऊंचाई पर चटांग दिया जाता है। इसके बाद लड़के पिरामिड बनाकर नाचते गाते हुए उस तक पहुंचकर मटकी फोड़ देते हैं। इसी रीत को दहीं हांडी कहते हैं।