एक जमाना ऐसा था जब महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय थी।उनकाे हर रोज पुरुष सत्ता के सामने कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता था। पुरुषों का तो अपने शरीर पर पूरा अधिकार होता है लेकिन बात जब महिलाओं की आती है तो समाज बेहद कठोर बन जाता है। दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं का शादी से पहले वर्जिन होना 'अनिवार्य शर्त' थी, पुरुषों के लिए इस तरह का कोई नियम नहीं है। हालांकि इस मुद्दे पर ना सिर्फ खुलकर आवाज उठाई गई बल्कि कुछ हद तक इस पर रोक भी लग चुकी है।
फिर चर्चा में वर्जिनिटी टेस्ट
वर्जिनिटी टेस्ट एक बार फिर चर्चा में है, कुछ दिनों पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि महिला का वर्जिनिटी टेस्ट करना संविधान के खिलाफ है। किसी महिला के खिलाफ लगे आरोपो की तह तक जाने के लिए उसका वर्जनिटी टेस्ट कराना न केवल उसके आतमसम्मान के खिलाफ है, बल्कि ये महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर भी डालता है। ऐसा इसलिए कहा क्योंकि जब मर्डर के एक केस में एक महिला को हिरासत में लिया गया, तो सीबीआई ने उस आरोपी महिला का वर्जिनिटी टेस्ट करवाया।
नन सिस्टर को लेकर कोर्ट ने सुनाया फैसला
हाईकोर्ट ने ये फैसला एक नन सिस्टर सैफी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान दिया। सिस्टर अभया 27 मार्च 1992 को 18 साल की उम्र में केरल के कोट्टायम के सेंट पियस एक्स कॉन्वेंट हॉस्टल के कुएं में मृत पाई गई थीं। उनकी हत्या के आरोप में फादर कोट्टूर और सिस्टर सेफी को स्पेशल CBI कोर्ट ने दिसंबर 2020 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। CBI कोर्ट की जांच में सामने आया था कि सेफी और कोट्टूर के बीच शारीरिक संबंध थे, इन्हें छिपाने के लिए दोनों ने अभया का मर्डर किया था। इस जांच की पुष्टि के लिए CBI ने सेफी का वर्जिनिटी टेस्ट कराया था। इस टेस्ट के रिजल्ट के आधार पर कोर्ट ने जांच को सही माना था।
हर किसी को गरिमा के साथ जीने का अधिकार
हाईकोर्ट ने सिस्टर सेफी को इस बात की अनुमति दी कि वे अपने मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ मुआवजे की मांग कर सकती हैं। कोर्ट का कहना है कि- "कुछ मौलिक अधिकारों को हिरासत में रहने के बावजूद निलंबित या खत्म नहीं किया जा सकता। आर्टिकल 21 के तहत गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी इसी में शामिल है। इसलिए महिला आरोपी या पीड़ित , उसके वर्जनिटी टेस्ट की इजाज़त नहीं दी जा सकती"। सिर्फ भारत ही नहीं पड़ोसी देश भी वर्जिनिटी टेस्ट के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
पाकिस्तान भी उठा चुका है आवाज
दो साल पहले पाकिस्तान की एक अदालत ने बलात्कार पीड़ितों की 'वर्जिनिटी टेस्ट बंद करने का फ़ैसला दिया है। पाकिस्तान के मानवाधिकार समर्थकों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है। पंजाब प्रांत में इस फ़ैसले के बाद हायमन चेक करने और टू-फिंगर टेस्ट करने की प्रक्रिया ख़त्म कर दी गई है। लाहौर हाई कोर्ट की जज आयशा मलिक ने कहा था कि ये टेस्ट अपमानजनक है और इनसे कोई फोरेंसिक मदद नहीं मिलती। मानवाधिकारों के समर्थक लंबे समय से रेप मामलों में वर्जिनिटी टेस्ट बंद करने की मांग कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट कई आदेश कर चुका है पारित
इससे पहले भी लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्य के मामले (2013) में सुप्रीम कोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने इस टेस्ट पर सख्त टिप्पणी देते हुए इसे रेप पीड़िता की निजता और उसके सम्मान का हनन करने वाला करार दिया था। कोर्ट का यह भी कहना था कि यह मानसिक को चोट पहुंचाने वाला टेस्ट है। इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने कई आदेश पारित किए।
कोर्ट जारी कर चुका है गाइडलाइन
याद हो कि झारखंड राज्य बनाम शैलेंद्र कुमार राय से संबंधित वाद में भी सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के जजमेंट का हवाला देते हुए कुछ गाइडलाइन भी जारी की थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि- लड़की शारीरिक संबंध बनाती है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए यह टेस्ट बिल्कुल अवैज्ञानिक है। यह टेस्ट करने के लिए जिम्मेदार शख़्स मिसकंडक्ट का दोषी होगा। शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों से कहा था कि वे डीजीपी और हेल्थ सेक्रेटरी से यह सुनिश्चित कराएं कि टू फिंगर टेस्ट न हो।
क्या होता है वर्जिनिटी टेस्ट
इस टेस्ट को टू फिंगर टेस्ट (Two Finger Test) भी कहते है। टू फिंगर टेस्ट यह पता लगाने के लिए होता था कि लड़की सेक्सुअली एक्टिव है या नहीं। इस टेस्ट में लड़की के प्राइवेट पार्ट में फिंगर डालकर मेडिकल एक्सपर्ट इसका पता लगाते थे, लड़की का कौमार्य चेक किया जाता था। एक्सपर्ट देखते थे कि लड़की के साथ शारीरिक संबंध बना है या नहीं या फिर कहीं वह सेक्स की आदती तो नहीं। इस टेस्ट के ज़रिये ही निष्कर्ष पर पहुंचा जाता कि लड़की पर सेक्सुअल अटैक हुआ या फिर सहमति से सेक्स किया गया। लेकिन, 2014 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद इस टेस्ट पर रोक लग गई।
महिलाओं के लिए अपमानजनक है ये टेस्ट
दरअसल हाइमन प्राइवेट पार्ट के अंदर पतली परत होती है, पर बचपन में खेलकूद करने या एक्सरसाइज करने से भी वो नष्ट हो जाती है। ऐसे में डॉक्टर्स का भी यही मानना है कि हाइमन जांचने से ये नहीं पता लगता कि महिला ने कभी शारीरिक संबंध बनाए हैं या नहीं। इस लिहाज से ये टेस्ट पूरी तरह फिजूल और निर्थक है और यह इससे कहीं ज्यादा महिलाओं के लिए अपमानजनक है।
बाकी देशों का ये है हाल
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इंडोनेशिया में तो पुलिस और सेना में महिलाओं की भर्ती से पहले उनका वर्जिनिटी टेस्ट किया जाता था। जिन महिलाओं के हाइमन नहीं डिटेक्ट होते थे, उन्हें सजा के रूप में भर्ती प्रक्रिया से तो बाहर कर ही दिया जाता था, साथ में उनके पास नेवी, आर्मी या किसी भी सुरक्षाबल में शामिल होने का अधिकार भी छीन लिया जाता था। तुर्की में वर्ष 2002 में यह कानून पास किया गया, जिसके तहत स्कूली बच्चियों के वर्जिनिटी टेस्ट को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया. इसके पहले देश के बहुत से प्रांतों और समुदायों में स्कूली बच्चियों का जबरन हाइमन टेस्ट किया जाता था।