आज के समय में लोग अपने घरों और दुकानों को बनवाने के लिए बड़े-बड़े इंजीनियरों की सहायता लेते हैं। अपने घर को हर तरह से खूबसूरत बनाने की कोशिश भी करते हैं। परंतु क्या आपने कभी यह सोचा है कि पुराने समय में भी ऐसे ही एक इंजीनियर थे, जिनकी पूजा का विधान सनातन धर्म में भी वर्णित है। सनातन धर्म में प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा प्राचीन समय के सबसे बड़े सिविल इंजीनियर थे। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा की पूजा दीवाली के एक दिन बाद की जाती है। तो चलिए आपको बताते हैं भगवान विश्वकर्मा के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें....
हिंदू धर्म में कहा जाता है सृजन देवता
हिंदू धर्म में भगवान विश्वकर्मा जी को निर्माण व सृजन देवता माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, आज ही के दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा पूजा के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी, मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है। जिससे जीवन में कभी भी जीवन में सुख-समृद्धि में भी कोई कमी नहीं होती।
रावण की लंका का निर्माण किया था विश्वकर्मा जी ने
भगवान विश्वकर्मा के संदर्भ में प्रचलित कथाओं के अनुसार, संसार की रचना भगवान ब्रह्मा जी ने की है और उसे सुंदर बनाने का कार्य भगवान विश्वकर्मा जी को दिया गया है। इसलिए उन्हें संसार का सबसे पहला और सबसे बड़ा इंजीनियर कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के पुत्र वास्तु की संतान थे। वहीं दूसरी ओर ये भी माना जाता है कि भगवान शिव के लिए त्रिशुल, विष्णु जी के लिए सुदर्शन चक्र, यमराज के लिए कालदंड, कृष्ण जी की द्वारका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ, रावण की लंका, इंद्र के लिए व्रज समेत कई चीजें भगवान विश्वकर्मा जी ने ही बनाई थी।
पूजा का महत्व
माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्ग लोक, पुष्पक विमान, द्वारिका नगरी, यमपुरी, कुबेरपुरी आदि का निर्माण किया था। उन्होंने सतयुग का स्वर्गलोक, त्रेता की लंका और द्वापर युग की द्वारका रचना भी उन्होंने ही की थी। श्रमिक समुदाय के लोगों के लिए यह दिन बहुत ही खास होता है। सारे कारखानों और औद्योगिक संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।