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कचरे से इनोवेशन! केले के तने से बनाया कपड़ा, महिलाओं को रोजगार दे रहीं 25 साल की वैशाली

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 25 Sep, 2020 05:12 PM
कचरे से इनोवेशन! केले के तने से बनाया कपड़ा, महिलाओं को रोजगार दे रहीं 25 साल की वैशाली

बिहार के हाजीपुर की महिलाएं, जो दुनियाभर में बेहतरीन क्वालिटी के गन्ने और केले की खेती के लिए फेमस अब एक नया काम करने जा रही है। दरअसल, अब इस गांव की महिलाएं केले के डंठल से फाइबर बनाएंगे, जिसमें उनका साथ दे रही हैं एक फैशन बिजनेसवुमन वैशाली प्रिया।

केले के वेस्ट से बना रही फाइबर

वैशाली बिहार की महिलाओं को काम देने के साथ उनके हुनर निखारने में भी मदद कर रही हैं। 25 साल की वैशाली ने ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं केले की डंठल से फाइबर बनाने का काम सिखा रही हैं, जिससे ना सिर्फ उन्हें रोजगार मिल रहा है बल्कि वो फैशन की समझ को भी विकसित कर रही हैं। केले के फाइबर के लगभग 5-6 किलोग्राम होते हैं, जिससे कई तरह के कपड़े बनाए जा सकते हैं। अब बिहार की महिलाएं की अपने हुनर से बेस्ट क्वालिटी के कपड़े बनाकर यूरोपियन एक्सपोर्ट मार्केट में अपनी जगह बना रही हैं।

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महिलाओं को दिया रोजगार

वैशाली ने 'सुरमई बनाना एक्सट्रेक्शन प्रोजेक्ट लॉन्च' (Surmayi Banana Extraction Project) किया है, ताकि ग्रामीण महिलाओं को अपना सामान आसानी से बचे सकें। बिहार की महिलाएं जो सामान बनाती हैं वो ऑर्गेनिक और नेचुरल फाइबर से बना होता है। वैशाली ने इस काम की शुरूआत बिहार की 30 महिलाओं के साथ की थी लेकिन उनके साथ कई औरतें जुड़ चुकी हैं।

औरतों को देती हैं स्किल डेवलपमेंट की क्लासेज

वैशाली का कहना है कि शुरूआत में इसमें अच्छी कमाई नहीं होती थी लेकिन धीरे-धीरे मुनाफा बढ़ने लगा। जब इस काम में ज्यादा कमाई होने लगी तो महिलाएं इससे जुड़ने लगी। रोजगार के साथ वैशाली ग्रामीण औरतों को स्किल डेवलपमेंट की क्लासेज भी दे रही हैं। इसमें महिलाओं को फाइबर बनाने के साथ कपड़े बनाने की बारीकियां, कपड़ा भिगोना, बुनाई और सारी प्रोसेसिंग सिखाई जाती है।

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कृषि विज्ञानं केंद्र से भी मिली मदद

वैशाली की कंपनी द्वावा बनाए गए फाइबर का इस्तेमाल अलग-अलग तरह के टेक्सटाइल्स बनाने के लिए किया जाता है। इसके बाद उन्हें वजन और मोटाई के हिसाब से यूज किया जाता है। इस काम के लिए हरिहरपुर के कृषि विज्ञान केंद्र ने एक मशीन भी उपलब्ध करवाई है, ताकि उन्हें काम में कोई मुश्किल ना हो। वर्कर्स को इस मशीन को चलाने की ट्रेनिंग वैशाली के साथ सीनियर एग्रो साइंटिस्ट डॉ. नरेंद्र कुमार देते हैं।

एक इंटरव्यू में वैशाली ने बताया, 'मैं बचपन से हरिहरपुर की महिलाओं को खेती करते हुए देख रही हूं। केले की फसल कटने के बाद बड़ी मात्रा में कचरे बच जाता था। जिसे आइडिया लगाकर मैंने कपड़ा बनाने के लिए इस्तेमाल किया।' 

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अपनी टेक्सटाइल डिजाइनिंग में वैशाली ने वेस्ट मटेरियल का जो इस्तेमाल किया है वो वाकई काबिले तारीफ है। इसे ना सिर्फ ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिल रहा है बल्कि वो अपने हुनर को भी निखार रही हैं।

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