पेरेंट्स द्वारा दी गई अच्छी परविश से ही बच्चा आगे चलकर समाज में एक अच्छा मुकाम हासिल कर पाता है। इसके लिए पेरेंट्स अलग-अलग पेरेंटिंग स्टाइल अपनाते हैं। मगर अक्सर पेरेंट्स एक से अधिक बच्चों की परविश करते दौरान कुछ गलतियां कर बैठते हैं जिसका नकारात्मक प्रभाव सीधा बच्चे के व्यक्तित्व व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। वहीं बच्चे की परविश के समय उसपर पूरा ध्यान ना देना या दूर रहना अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग (Uninvolved Parenting) कहलाती है। मगर इसतरह की पेरेंट्स स्टाइल का बच्चे पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में हर मां-बाप को बच्चे की परविश में अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग स्टाइल अपनाने के बचना चाहिए। चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से...
क्या हैं अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग?
यह एक पेरेंटिंग स्टाइल है, जिसमें पेरेंट्स बच्चे की परवरिश दौरान कुछ अलग व्यवहार करते हैं। वे बच्चों पर कम ध्यान देने के साथ उनसे दूर-दूर रहते हैं। ऐसे पेरेंट्स को बच्चे से जुड़ी बहुत कम बातें पता होती हैं और वे उनकी जरूरतों का ध्यान भी नहीं रखते हैं। हो सकता है कि काम में अधिक बिजी होने से पेरेंट्स बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते हो। मगर इसतरह जाने-अनजाने में बच्चों को नजरअंदाज करने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है।
अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग के लक्षण
. मां-बाप को बच्चों के बारे में ज्यादा जानकारी ना होना
. पेरेंट्स बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिताते हैं
. बच्चे के लिए जिम्मेदार ना होना
. इसतरह के पेरेंट्स अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, अन्य एक्टिविटी या किसी चीज पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं
. वे बच्चों की खुशी व जरूरतों का ध्यान नहीं रखते हैं
अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग के नुकसान
बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर
अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग का नकारात्मक प्रभाव बच्चे के व्यक्तित्व व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। मां-बाप का अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदार व लगाव ना होने से बच्चे भी गलत संगत में जा सकते हैं। ऐसे बच्चे पढ़ाई में भी सही से ध्यान नहीं दे पाते हैं। इसके कारण बच्चे आगे चलकर स्ट्रेस या डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं।
बच्चे में उदासीनता की भावना आना
इसतरह की पेरेंटिंग में पेरेंट्स का बच्चे से ज्यादा लगाव नहीं होता है। ऐसे पेरेंट्स के कारण बच्चों में भी उदासीनता की भावना पैदा हो सकती है। वे हर पल खुद को अकेला महसूस कर सकते हैं। साथ ही वे बड़े होकर मां-बाप के प्रति जिम्मेदार भी नहीं रह सकते हैं।
अन्य बच्चे से व्यवहार अलग
जिस बच्चे की परवरिश अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग स्टाइल में होती है उसका नेचर दूसरे बच्चों की तुलना में थोड़ा अलग होता है। ऐसे बच्चे बड़े होकर जिद्दी, गुस्सैल हो सकते हैं।
स्किल्स और क्रिएटिविटी की कमी
अगर मां-बाप बच्चे की परविश में ध्यान नहीं देंगे तो इससे उनकी स्किल्स और क्रिएटिविटी में कमी आ सकती है। ऐसी पेरेंटिंग से बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है, जिस वजह से वे पढ़ाई में भी दिलचस्पी कम लेने लगते हैं।
हर समय सहमे रहते बच्चे
अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग के कारण बच्चे के मन में हर समय किसी तरह का डर या फोबिया हो सकता है। इसतरह के बच्चे हर समय डरे व सहमे दिखाई देते हैं। साथ ही वे बच्चे का स्वभाव समाज के लोगों के प्रति बदल सकता है।
हो सकते डिप्रेशन का शिकार
अगर बच्चे की परविश अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग स्टाइल से की जाए तो ने मानसिक तौर पर बीमार हो सकते हैं। इसके कारण वे बड़े होकर स्ट्रेस या डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं।
इसतरह पेरेंट्स को बच्चों की परविश करते समय अन-इंवॉल्वड पेरेंटिंग स्टाइल अपनाने की गलती नहीं करनी चाहिए। नहीं तो बच्चा बड़ा होकर गैर-जिम्मेदार, जिद्दी, गुस्सैल, डरपोक, उदासीन हो सकता है। आप भले ही काम में जितना मर्जी बिजी हो मगर रोजाना कुछ समय बच्चों के लिए निकाले और उनके साथ बात करें। उनकी जरूरतों व खुशी को समझने की कोशिश करें।