आज महिलाएं किसी से भी कम नहीं हैं। चाहे फिर वो खेल हो या फिर शिक्षा हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों को बराबर की टक्कर दे रही हैं। कुछ ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत किया है भारत की जुड़वा बहनों ताशी और नुंग्शी मलिक ने। इन जुड़ावा बहनों ने माउंट एवरेस्ट पर एक साथ चढ़ाई करके इतिहास रचा है और वो न सिर्फ भारत की बल्कि दुनिया की एक साथ माउन्ट एवेरेस्ट की चढ़ाई करने वाली बहनें बन गयी हैं। आइए आज इस स्टोरी में बतातें है आपको की कौन हैं वो जुड़वा बहनें और कैसा था इनका सफलता का सफर...
कौन हैं ताशी और नुंग्शी
ताशी और नुंग्शी मालिक मूल रूप से हरियाणा राज्य की रहने वाली हैं। उनका जन्म सोनीपत में एक भारतीय सेना अधिकारी कर्नल वीरेंद्र सिंह मलिक और उनकी पत्नी अंजू थापा के घर हुआ था। आर्मी फैमिली से ताल्लुक की वजह से दोनों बहनों ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, केरल और मणिपुर राज्यों के कई स्कूलों में पढ़ाई की। साल 2013 में उन्होंने 'सिक्किम मनिपाल यूनिवर्सिटी' से पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
2010 में ली पर्वतारोहण के लिए ट्रनिंग
इन बहनों ने 2010 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में प्रशिक्षण लिया। मई 2013 को, उन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह किया और ऐसा करने वाली वे पहली जुड़वां बहनें बन गईं। वे सेवन समिट्स को पूरा करने वाली पहली महिला जुड़वां भी हैं। उन्होंने नौ गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, सात लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स अपने चढ़ाई के कारनामों के लिए, नारी शक्ति पुरस्कार पुरस्कार 2020 - महिला सशक्तिकरण के लिए सेवाओं को मान्यता देने वाली महिलाओं के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान - तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार और कई अन्य सामान हासिल किए। एक मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इन बहनों का कहना है कि एवरेस्ट फतह करने की योजना उन्होंने महज 19 साल की उम्र में बनाई थीं और तब तक उन्होंने देहरादून में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में दो पाठ्यक्रम समाप्त कर लिए थे। लेकिन उनकी मां को चिंता थीं। मां को बहुत समझाने के बाद उन्होंने आखिरी अपनी तय योजना के अनुसार एवरेस्ट फतह किया।
21 साल की उम्र में बनीं एवरेस्ट फतह करने वाली पहली जुड़वां बहनें
साल 2013, महज 21 साल की उम्र में उन्होंने आखिरकार माउंट एवरेस्ट फतह कर लिया। वास्तव में ये उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से है। 19 मई 2013 को माउंट एवरेस्ट फतह करने के बाद उन्होंने 15 जुलाई 2015 को केवल दो सालों में एक्सप्लोरर्स ग्रैंड स्लैम पूरा किया। वे एक्सप्लोरर्स ग्रैंड स्लैम को पूरा करने वाले पहले भारतीय और दक्षिण एशियाई में से हैं। सितंबर 2019 में, नुंगशी और ताशी ने विश्व की सबसे कठिन दौड़: इको-चैलेंज फिजी में भारतीय 'खुकुरी योद्धाओं' का नेतृत्व किया।
परिवार हर कदम पर रहा साथ
ताशी और नुंग्शी के इस सपने को पूरा करने के देश से तो कम ही आर्थिक मदद मिली पर परिवार वाले हर कदम पर उनके साथ थे और बेटीयों की मदद के लिए उन्होंने अपनी ज्वेलरी तक बेच दी। जुड़वा बहनों ने एवेरेस्ट की चढ़ाई के लिए कई तरह की ट्रेनिंग्स लीं जिसमें योग और मैडिटेशन भी शामिल था। दोनों बहनों ने एक दूसरे को हमेशा मोटीवेट किया और आगे बढ़ती गयीं। वो दोनों एक दूसरे का सबसे बड़ा सपोर्ट बनीं।
स्विस एल्प्स पर भी लहरा चुकीं है तिंरगा
ताशी और नुंग्शी मलिक ‘स्विट्जरलैंड 100 परसेंट वुमैन पीक चैलेंज' के अंतर्गत ‘स्विस एल्प्स' पर्वतमाला पर 4000 मीटर (13,000 फीट) की दो चोटियों की भी चढ़ाई कर चुकी हैं । उन्होंने इस अनुभव को बेहतरीन करार किया और कहा कि भविष्य में वे भी इस तरह पर्वतों को फतह करना जारी रखेंगी।
महिलाओं के लिए की फाउंडेशन की शुरुआत
साल 2015 में दोनों बहनों ने नुंग्शी और ताशी फाउंडेशन की शुरुआत की। ये उन महिलाओं को सहारा देने के लिए था जो बाहर निकलकर आगे बढ़ना चाहती हैं। उन्होंने बहुत सी वेब सीरीज के जरिये महिलाओं को हमेशा मोटीवेट किया और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दिया। महिलाओं के लिए गए अथक प्रयासों के लिए उन्हें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित भी किया।