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Inspiring Story: शुद्ध और बिना मिलावट का दूध बेच रहीं शिल्पी, खड़ा कर दिया 1 करोड़ का बिजनेस

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 18 Aug, 2020 06:19 PM
Inspiring Story: शुद्ध और बिना मिलावट का दूध बेच रहीं शिल्पी, खड़ा कर दिया 1 करोड़ का बिजनेस

शहर हो या गांव, आजकल दूध में  पेंट और डिटर्जेंट की मिलावट होना आम बात हो गई है। बड़े शहरों में तो शुद्ध दूध खोजना नामुमकिन सा लगता है लेकिन यहां हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जो ना सिर्फ शुद्ध दूध बेचती हैं बल्कि उसकी डिलीवरी का काम भी खुद करती हैं। हम बात कर रहे हैं, द मिल्की कंपनी (The Milk Company) की फाउंडर शिल्पी सिन्हा की जो शुद्ध दूध की बिक्री कर करोड़ों का बिजनेस कर रही हैं।

2018 में की द मिल्की कंपनी की शुरूआत

झारखंड के डाल्टनगंज की रहने वाली शिल्पी अपने दिन की शुरूआत 1 कप शुद्ध दूध से करती हैं। मगर, जब वह बेंगलुरु आईं तो उन्हें भी शुद्ध दूध के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। उनका कहना है, "मैं बच्चों के बड़े होने की कल्पना शुद्ध व स्वच्छ दूध के बिना नहीं कर सकती"। फिर क्या दूध की अहमियत को समझते हुए उन्होंने 6 साल बाद जनवरी 2018 में "द मिल्क इंडिया कंपनी" की शुरुआत की। शिल्पी का डेयरी स्टार्टअप्स दूसरी कंपनियों से इसलिए अलग है क्योंकि वह गायों के शरीर की कोशिकाओं के शोध व विकास के मामले में काफी आगे है, जिसे ध्यान में रखकर ही दूध खरीदा जाता है।

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बच्चों के लिए क्यों जरूरी शुद्ध दूध?

बच्चों की हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए गाय का दूध बेहद जरूरी है। साथ ही यह कैल्शियम की कमी को भी पूरा करता है। शिल्पी की कंपनी गाय का कच्चा शुद्ध दूध बेचती हैं, जिसे किसी भी तरह से पाश्चरीकृत नहीं किया जाता। फिलहाल उनका स्टार्टअप बेंगलुरु, स्थित सरजापुर के 10km के एरिया में दूध की बिक्री करता है, जिसकी कीमत 62 रुपए प्रति लीटर है। गुणवत्तापूर्ण की परख के लिए वह गायों की दैहिक कोशिकाओं की गणना मशीन द्वारा करती हैं। गायों की दैहिक कोशिका जितनी कम होगी, दूध भी उतना ही शुद्ध होगा।

8 साल के बच्चों को मुहैया करवाती हैं दूध

27 साल की शिल्पी फिलहाल 1 से 8 साल के बच्चों को गाय का दूध मुहैया करवाती हैं क्योंकि इस उम्र में बच्चों को इसकी ज्यादा जरूरत होती है। उन्हें ज्यादातर ऑर्डर 9 से 10 महीने के बच्चों के ही मिलते हैं। हालांकि ऑर्डर लेने से पहले वह माताओं से बच्चों की उम्र पूछ लेती हैं और बच्चे की उम्र एक साल से कम होती हैं तो वह इंतजार करती हैं।

एक्सपर्ट से लेती हैं परामर्श

यही नहीं, शिल्पी की कंपनी बच्चों को दूध देने से पहले पैथोलॉजिस्ट, डाइटीशियन, न्यूट्रीशन से भी सलाह लेती हैं, ताकि दूध की सही मात्रा और खपत को ध्यान में रखकर डिलीवरी की जाए।

किसानों के साथ काम

बता दें कि बिजनेस शुरु करने से पहले उन्होंने कर्नाटक और तमिलनाडु के 21 का दौरा किया था। उन्होंने किसानों के साथ काम भी किया लेकिन कन्नड़ व तमिल भाषा की समझ ना आने के कारण उन्हें काफी दिक्कत भी आती थी। हालांकि समय और जज्बे के साथ उन्होंने किसानों को अपने साथ शामिल कर ही लिया। उन्होंने देखा कि किसान गायों को चारे की बजाए रेस्टोंरेट का वेस्ट फूड्स खिलाते हैं। ऐसे में सबसे पहले तो शिल्पी ने किसानों को समझाया की इससे दूध को नुकसान होगा जो बच्चों के लिए सही नहीं है। उन्होंने किसानों को दूध की सही प्रक्रिया समझाई। उन्होंने किसानों से स्वस्थ दूध के बदले अच्छी कीमत देने का वादा किया, जिसके बाद उन्हें मक्का खिलाया जाने लगा।

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एक महिला और कंपनी की इकलौती फाउंडर होने के कारण शिल्पी को बिजनेस खड़ा करने में भी काफी दिक्कतें आईं। उन्हें गायों का दूध निकालना, पैकिंग और कर्मचारी ढूंढने में काफी परेशानी झेलनी पड़ी। शुरूआत में वह खुद सुबह 3 बजे उठकर खेतों में जाती थी और सुरक्षा के लिए अपने साथ चाकू और मिर्ची स्प्रे रखती थीं लेकिन धीरे-धीरे उनके साथ लोग जुड़े गए।

मगर, उनकी कंपनी एक ऐसे मुकाम पर हैं, जहां लोग उन्हें पहचानने लगे हैं और उनके उत्पाद की अहमियत को भी समझते हैं। वह पिछले 3 सालों से अपने परिवार से दूर इस कंपनी पर काम कर रही हैं, जो धीरे-धीरे रंग भी ला रही है।

कंपनी की ग्रोथ और आमदनी

आज उनकी कंपनी 50 किसानों और 14 मजदूरों के नेटवर्क के साथ काम कर रही हैं। उनकी 14 लोगों की 'मिनी-फाउंडर्स' टीम है, जो सारा काम संभालती हैं। महज 11,000 रुपए से बिजनेस शुरु करवाने वाली शिल्पी आज करोड़ों में कमाई कर रहीं है। हालांकि इसके साथ वह बाहरी निवेश जुटाने भी लगी हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा देशों के बच्चों को शुद्ध दूध पहुंचाया जा सके।

शिल्पी बताती हैं कि उन्होंने मार्केटिंग पर कोई भी पैसा नहीं खर्चा बल्कि सिर्फ माउथ पब्लिसिटी के जरिए उन्हें 500 ग्राहकों मिल गए थे। वह अपने इस बिजनेस के जरिए बच्चों और माताओं के जीवन में बदलाव करना चाहती हैं, ताकि भारत में कोई भी बच्चा कुपोषण का शिकार ना हो।

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