नारी डेस्क: टाटा समूह के चेयरमेन रतन टाटा का बुधवार देर रात निधन हो गया, जिससे देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। रतन टाटा का अंतिम संस्कार आज (11 अक्टूबर 2024) को मुंबई के वर्ली श्मशान घाट में किया जाएगा। उनके अंतिम संस्कार की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। रतन टाटा पारसी समुदाय से ताल्लुक रखते थे, लेकिन उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया हिंदू परंपराओं के अनुसार होगी।
राजकीय सम्मान से विदाई
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने घोषणा की है कि रतन टाटा को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी। उनका पार्थिव शरीर पहले कोलाबा स्थित उनके घर लाया जाएगा और फिर अंतिम दर्शन के लिए मुंबई के नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में रखा जाएगा। आम लोग सुबह 10 बजे से दोपहर साढ़े तीन बजे तक उनके अंतिम दर्शन कर सकेंगे।
पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की परंपरा
पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बहुत खास और अनूठी होती है। पारसी धर्म के अनुयायियों का मानना है कि मृत्यु के बाद शरीर को प्रकृति के पास लौटा देना चाहिए। इसके लिए वे 'टावर ऑफ साइलेंस' या 'दखमा' नामक संरचना का उपयोग करते हैं।
क्या होता है ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’?
टावर ऑफ साइलेंस एक खुली, गोल संरचना होती है जिसमें एक गड्ढा होता है। मृतकों के शरीर को इस गड्ढे में रखा जाता है, जहां आसपास के पक्षी शवों को खा जाते हैं। पारसी मान्यता के अनुसार, आकाश, पृथ्वी और आग पवित्र हैं, इसलिए मृत शरीर को इनमें से किसी में भी नहीं मिलाया जाना चाहिए। यह तरीका पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि इसमें किसी रासायनिक पदार्थ का उपयोग नहीं होता।
अंतिम दर्शन की व्यवस्था
रतन टाटा का पार्थिव शरीर कोलाबा स्थित उनके निवास पर रखा जाएगा, उसके बाद अंतिम दर्शन के लिए नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स हॉल में लाया जाएगा। वहां आम जनता के लिए दर्शन का समय निर्धारित किया गया है। अंतिम दर्शन के बाद, रतन टाटा के पार्थिव शरीर को वर्ली श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाएगा।
सम्मान गार्ड की सलामी
मुंबई पुलिस के सम्मान गार्ड टीम द्वारा रतन टाटा को उनके घर के बाहर ही सलामी दी जाएगी। मुंबई पुलिस बैंड में कुल 23 लोग होते हैं, जिनमें से 21 विभिन्न संगीत वाद्य यंत्र बजाते हैं और दो गार्ड होते हैं। अंतिम संस्कार के दौरान, रतन टाटा के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा जाएगा।
रतन टाटा का निधन न केवल एक उद्योगपति के रूप में, बल्कि एक मानवीय दृष्टिकोण से भी हमारे लिए एक बड़ा नुकसान है। उनके योगदान और नेतृत्व को हमेशा याद रखा जाएगा। पारसी समुदाय की अंतिम संस्कार की परंपरा भी हमारे समाज की विविधता और धर्मों के बीच की अनूठी सोच को दर्शाती है।