दिवाली आने वाली है और इस दिन लोग दीये जलाकर भगवान श्रीराम का रावण पर विजय पाने की खुशियां मनाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम जब सीता माता को लेने के लिए लंका जा रहे थे, बीच में समुद्र था, तब श्रीराम की वानर सेना ने पानी में पत्थर डाल-डालकर राम सेतु का निर्माण किया था।
कहां है राम सेतु ?
भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है, इसे भारत में रामसेतु के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई करीब 48 किलोमीटर है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक दूसरे से अलग करता है। आज समुद्र पर बने रामसेतु को दुनियाभर में एडेम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है और दुर-दुर से लोग इसे देखने आते हैं। आईए जानते हैं रामसेतु के बारे में 5 अनसुने रहस्य जिसके बारे में आपने अब तक नहीं सुना होगा।
नल और नील से किया था राम सेतु का निर्माण
रावण का वध करने के लिए जब भगवान श्री राम लंका पहुंचे तो उनके लिए सबसे बड़ी समस्या थी रावण की लंका तक पहुंचना। इसके लिए भगवान श्री रामचंद्र जी को इस समुद्र को पार करना था। इसके लिए भगवान राम ने रामसेतु के निर्माण की योजना बनाई। रामसेतु के निर्माण हेतु जब भगवान श्री राम ने समुद्र देव से मदद मांगी तो समुद्र देव ने बताया कि आपकी सेना में नल और नील ऐसे प्रांणी हैं जिन्हें इस पुल के निर्माण की पूरा जानकारी है। समुद्र देव ने भगवान राम से कहा कि नल और नील आपकी आज्ञा से सेतु बनाने के कार्य में अवश्य सफल होंगे।
सिर्फ 5 से 6 दिनों में किया था रामसेतु का निर्माण
माना जाता है की रामसेतु का निर्माण महज 5 से 6 दिनों में पूरा हुआ था। आपको बता दें समुद्र की लंबाई लगभग 100 योजन है। एक योजन में लगभग 13 से 14 किलोमीटर होते हैं यानि रामसेतु की लंबाई करीब 1400 किलोमीटर है।
लंका से लौटने के बाद सेतु को समुद्र में कर दिया था तबदील
रावण का वध कर श्रीलंका से लौटने के बाद भगवान राम ने रामसेतु को समुद्र में डुबो दिया था। ताकि कोई भी इसका दुरुपयोग ना कर सके। यह घटना युगों पहले की बताई जाती है। लेकिन बाद में समद्र का जल स्तर घटता गया और सेतु फिर से ऊपर आता गया।
सेतु के निर्माण के लिए खुद भगवान राम ने रखा था व्रत
रामसेतु के निर्माण के दौरान सेतु के निर्माण कार्य के पूरा होने के लिए भगवान राम ने विजया एकादशी के दिन स्वयं बकदालभ्य ऋषि के कहने पर व्रत रखा था। नल तथा नील की मदद से रामसेतु का निर्माण पूरा हुआ था।
पैदल तय करते थे दूरी
आपको बता दें 15वीं शताब्दी तक लोग रामसेतु से पैदल रामेश्वरम से मन्नार की दूरी तय करते थे। इस पर लोग पारंपरिक वाहनों से जाया करते थे। नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार यह पुल लगभग सात साल पुराना है।