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हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: शादी न होने पर सहमति से शारीरिक संबंध अब रेप नहीं माना जाएगा

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 20 Sep, 2025 03:34 PM
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: शादी न होने पर सहमति से शारीरिक संबंध अब रेप नहीं माना जाएगा

 नारी डेस्क: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जो महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि दो बालिग व्यक्ति आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं और बाद में किसी कारण से उनकी शादी नहीं होती, तो इसे दुष्कर्म (रेप) नहीं माना जाएगा। इस फैसले के तहत कोर्ट ने एक मामले में युवक के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म का केस रद्द कर दिया है, क्योंकि पाया गया कि संबंध दोनों की सहमति से थे और शादी न होने की वजह उनके परिवारों के झगड़े थे।

क्या था पूरा मामला?

एक महिला ने अपने मंगेतर पर शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया था। दोनों की सगाई हो चुकी थी और उनकी शादी नवंबर 2024 में होनी थी। लेकिन शादी से पहले दोनों परिवारों के बीच मतभेद हो गए और शादी टूट गई। इसके बाद महिला ने युवक पर दुष्कर्म का मामला दर्ज करा दिया।

 कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस कीर्ति सिंह की बेंच ने इस मामले की जांच-पड़ताल की और पाया कि दोनों पक्ष पढ़े-लिखे और समझदार बालिग व्यक्ति थे। दोनों के बीच शारीरिक संबंध पूरी तरह से आपसी सहमति से बने थे। शादी न होने का कारण दोनों परिवारों के बीच विवाद था, न कि युवक की कोई गलत नियत। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी महिला की सहमति शादी के झूठे वादे पर ली जाती है, तो यह साबित करना जरूरी है कि युवक शुरू से शादी करने का इरादा नहीं रखता था और केवल शारीरिक इच्छा पूरी करने के लिए झूठ बोला। इस मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला।

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कानून का गलत इस्तेमाल न हो

हाईकोर्ट ने इस केस को कानून के दुरुपयोग का उदाहरण बताया। कोर्ट ने कहा कि “जब दो लोग सहमति से एक रिश्ता बनाते हैं और वह शादी में न बदले, तो इसे अपराध का रूप देना गलत है।” अदालत ने साफ किया कि वह ऐसे मामलों में कानून का गलत इस्तेमाल बर्दाश्त नहीं करेगी। इसी कारण युवक के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया गया।

यह फैसला समाज में सहमति से बने रिश्तों और शारीरिक संबंधों को लेकर कई भ्रमों को दूर करता है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि शादी न होने पर भी अगर संबंध दोनों की सहमति से बने हैं, तो उसे दुष्कर्म नहीं माना जाएगा।

यह निर्णय महिलाओं और पुरुषों दोनों के अधिकारों और न्याय व्यवस्था की समझदारी को दर्शाता है और फालतू मामलों से न्यायालय को बचाने में मदद करेगा।  

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