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बुढ़ापा आने पर पालने वाले ही क्यों बन जाते हैं बोझ?

  • Edited By Harpreet,
  • Updated: 03 Mar, 2020 01:53 PM
बुढ़ापा आने पर पालने वाले ही क्यों बन जाते हैं बोझ?

एक माली अपनी पूरी मेहनत और लग्न के साथ एक पौधे को सींचता है। दिन-रात उसकी देखभाल कई महीनों के बाद रंग लाती है। माली तो फिर दिन में 2 या 3 बार पौधों का ध्यान रखता होगा, मगर मां-बाप बच्चों के वो माली हैं जो चौबीस घंटे अपने फूलों की देखभाल करते हैं। सालों हमारी देखभाल के बाद जब हम अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं, तो कहीं न कहीं अपने मां-बाप के उन बलिदानों को भूल जाते हैं, जो उन्होंने हमारा जीवन संवारने के लिए किए।

बुजुर्ग होते हैं वृक्ष की छाया

हमारे बूढ़े हो चुके मां-बाप हमसे प्यार के अलावा और कुछ नहीं मांगते। बस दिन में एक दो बार उनका कोई प्यार से हाल पूछ ले, उनके लिए इतना ही काफी होता है। मगर अपने बिजी लाइफस्टाइल के चलते बच्चे कई बार मां-बाप के लिए समय नहीं निकाल पाते। हमारे पास घंटो सिनेमा हॉल या शॉपिंग के लिए तो वक्त होता है, मगर मां-बाप के पास कुछ पल बैठते ही हमें समय वेस्ट होता नजर आने लगता है।

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मां-बाप के साथ ही ऐसा क्यों?

जब बच्चा छोटा होता है, तो खाते-पीते वक्त वह चीजों को गिरा देता है, कई बार खुद के कपड़ों पर तो कभी जमीन पर। मगर मां-बाप बहुत ही प्यार से उसके कपड़े साफ करते हैं, उसका माथा चूमते हुए उसके प्यार से साफ करते हैं। साथ ही जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, उसे खाने का सही सलीका भी बताते हैं। मगर यदि एक बूढ़े मां-बाप कुछ खाते वक्त अपने ऊपर कुछ गिरा दें, तो वही बच्चा उन पर गुस्सा हो जाता है। ऐसा क्यों? जब हम पढ़ लिख जाते हैं, तो हमारे तरीकों के साथ-साथ हमारी सोच भी मार्डन हो जाती है। साथ ही हम अपने साथ दोस्तों के मार्डन मां-बाप देखकर खुद के पेरेंट्स से भी वह सब कुछ Expect करने लगते हैं। मगर जरुरी नहीं हर व्यक्ति का जीवन आसान हो। हो सकता है आपके मां-बाप ने आपको पालने में कई कठिनाईयों का सामना किया है। उन कठिनाईयों के चलते उन्हें कई बार मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ा हो। अब इसका मतलब यह नहीं कि उनके कांपते हाथ अगर किसी चीज को अच्छे से न पकड़ पाएं तो आपको उस वजह से शर्मिंदा होना पड़े।

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मां-बाप हैं ईश्वर से भी ऊपर..

भगवान हमारे कर्मों के मुताबिक हमें सजा देते हैं, मगर मां-बाप वो शख्स हैं, जो हमारी लाख गलतियों के बावजूद हमें कभी दुखी नहीं देख सकते। ऐसे में हुआ न मां-बाप का दर्जा भगवान से भी ऊपर। मां-बाप हमें जो संस्कार देते हैं, जिनके सहारे हम जीवन में इतना कुछ पा लेते हैं, उसके बदले अगर हम उन्हें थोड़ी सी इज्जत और प्यार दे भी दें तो इसमें कोई बुराई नहीं, क्योंकि एक बार मां-बाप चले जाएं तो वे वापिस नहीं आते। उनकी कमी एक इंसान को सारी उम्र खलती रहती है। मां-बाप की कीमत आप उन बच्चों से पूछिए जो अनाथ आश्रम में पल रहे हैं। हालांकि वहां उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होगी, मगर मां-बाप की कमी कोई जगह, दुनिया की कितनी भी दौलत कभी पूरी नहीं कर सकती।

पहली जिम्मेदारी

मां-बाप के प्रति हमारे फर्ज सबसे पहले होने चाहिए। जिस तरह उन्होंने हमें प्यार और बिना मतलब के पाला है, हमें भी बुजुर्ग मां-बाप को कभी बोझ नहीं समझना चाहिए। अपने बच्चों के साथ-साथ उनका भी ख्याल रखना चाहिए। फिर देखिएगा भगवान से कभी कुछ मांगने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मां-बाप की दुआएं भगवान को खुद आपके घर आने को मजबूर करेंगी।

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जो बच्चे मां-बाप की कद्र नहीं करते उनके लिए कुछ पंक्तियां...

वह दिन मेरे लिए बहुत खास था, जिस दिन चला था तू पहली बार, 
साथ तेरे हम भी चले थे उस सफर पर, 
सोचा था जिंदगी के आखिर सफर तक साथ देगा तू,
मगर किस्मत यूं धोखा करेगी कभी सोचा नहीं था हमने। 
 

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