प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बहुत ही बड़ा खतरा है। यही कारण है कि भारत समेत पूरी दुनिया में प्लास्टिक को लेकर मुहिम छेड़ी गई है ताकि लोगों को इसके नुकसान और इस्तेमाल न करने के लिए जागरुक किया जा सके। प्लास्टिक से सिर्फ मिट्टी में ही नहीं बल्कि पानी और पहाड़ों को भी बड़ा नुकसान हो रहा है। द साइंस जर्नल में छपी एक रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2040 तक दुनियाभर में तकरीबन 1.3 अरब टन प्लास्टिक वेस्ट जमा हो जाएगा। ऐसे में सिंगल यूज प्लास्टिक जैसे गिलास, प्लेट्स, ड्रिंक पीने के स्ट्रॉ यह सब चिंता का विषय बन गए हैं।
पूरी तरह से प्लास्टिक पर निर्भर हो चुके हैं लोग
आज सभी प्लास्टिक पर बहुत ही बुरी तरह से निर्भर हो चुका है। वहीं प्लास्टिक का ढेर लगता जा रहा है। फिलहाल इसके लिए कई हल भी निकालने की लगातार कोशिश की जा रही है। सिंगल यूज प्लास्टिक की बात करें तो ड्रिंकिंग स्ट्रॉ का इस्तेमाल करने वालों की संख्या भी बहुत ही ज्यादा है। वैसे तो आजकल कांच से लेकर मेटल और पेपर आदि के इको फ्रैंडली इस्तेमाल किए जाने लगे हैं लेकिन क्या वाकई में पेपर के स्ट्रॉ पर्यावरण और सेहत के लिए नुकसानदायक नहीं हैं।
पेपर स्ट्रॉ पर हुआ शोध
हाल ही में बेल्जियम के एंटवर्प यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने पेपर स्ट्रॉ पर एक अध्ययन किया है जिसमें पाया गया है कि प्लास्टिक के मुकाबले इसमें कही ज्यादा मात्रा में पॉलीफ्लोरो एल्किल पदार्थ पाया जाता है।
क्या होता है पॉलीफ्लोरो एल्किल?
पॉलीफ्लोरो एल्किल(PFAS) जिसे फॉरएवर केमिकल भी कहा जाता है ये एक ऐसा पदार्थ है जो बारिश मिट्टी में भी काफी समय तक टिका हुआ रहता है। शोधकर्ताओं की मानें तो पेपर के साथ ही बांस से बने स्ट्रॉ में भी पॉलीफ्लोरो एल्किल की मात्रा काफी होती है। इसलिए प्लास्टिक के मुकाबले इसे बेहतर विकल्प नहीं माना जा सकता है।
सेहत के साथ पर्यावरण को भी नुकसान
पॉलीफ्लोरो एल्किल की दशकों तक पर्यावरण में भी मौजूद रह सकते हैं और इसमें पानी भी दूषित होता है। वहीं ये पदार्थ इंसानों की सेहत के लिए भी बहुत ही नुकसानदायक और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।