प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को अपनी सेहत का खास ख्याल रखना पड़ता है। डाइट के साथ इस समय रूटीन चेकअप और कुछ टेस्ट करवाने भी जरूरी होते हैं, जिसमें से एक है NIPT टेस्ट। जच्चा और बच्चा दोनों की सेहत के लिए यह टेस्ट बहुत जरूरी है।
क्या है NIPT टेस्ट?
NIPT यानि नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग बच्चे में जेनेटिक बीमारियों का पता लगता है। दरअसल, इसमें यह पता लगाया जाता है कि बच्चे को जेनेटिक बीमारी होने का रिस्क कितना है या उसे कोई विकार तो नहीं है। कंसीव करने के कुछ हफ्ते बाद बच्चे का DNA मां के खून में मिलना शुरू हो जाता है, जिससे इसकी जांच की जा सकती है।
किस सिंड्रोम की जांच करता है यह टेस्ट?
. डाउन सिंड्रोम
. टर्नर सिंड्रोम
. एडवर्ड्स सिंड्रोम
. पटाऊ सिंड्रोम
दरअसल, अजन्मे बच्चे में डाउन सिंड्रोम की संभावना अधिक होती है। अगर बच्चे को डाउन सिंड्रोम होने के चांसेस होते हैं तो डॉक्टर एम्नियोसिंथेसिस (Amniocentesis) या कोरिओनिक विलस सैम्पलिंग (Chorionic Villus Sampling) जांच की सलाह देते हैं।
क्या होता है एनआईपीटी का प्रोसेस?
इसके लिए डॉक्टर्स खास अल्ट्रासाउंड स्कैन (NT स्कैन) की मदद से फ्लूइड की जांच की जाती है, जो बच्चे के सिर के पीछे होती है। इसके बाद डुअल मार्कर, कम्बाइन टेस्ट किया जाता है, जो बीमारी होने का सटीक रिजल्ट देता है।
कब करवाना चाहिए NIPT?
. अगर मां की उम्र 30 साल से अधिक हो
. पहली प्रेगनेंसी में बच्चे को डाउन सिंड्रोम होना
. अगर फैमिली में किसी को जेनेटिक प्रॉब्लम हो
एनआईपीटी के नतीजे
इसके रिजल्ट 2-3 हफ्तों में मिल जाते हैं। रिजल्ट नेटेगिव आने पर बच्चा बिल्कुल सुरक्षित होता है। वहीं अगर टेस्ट पॉजिटिव आए तो बच्चे को किसी भी सिंड्रोम का खतरा रहता है। ऐसे में आप डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं।