नारी डेस्क: मेनोपॉज़ की चर्चा होते ही लोग मान लेते हैं कि यह केवल महिलाओं का विषय है, जबकि इसका प्रभाव पूरे परिवार की भावनात्मक और मानसिक सेहत पर पड़ता है। मेनोपॉज़ के बदलते चरण सिर्फ़ एक महिला नहीं, उसके साथी, रिश्तों और घर की ऊर्जा को भी प्रभावित करते हैं। इसके बावजूद इस बातचीत में पुरुषों की भूमिका लगभग गायब रहती है। Tamanna Singh, Menopause Coach के अनुसार, मेनोपॉज़ को समझना केवल महिलाओं की ज़रूरत नहीं, बल्कि पुरुषों की जागरूकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि समझ, समर्थन और संवाद ये तीनों चीज़ें तभी पूरी हो पाती हैं जब इस सफर में दोनों साथी बराबर शामिल हों। मेनोपॉज़ और पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य के बीच की यह अनदेखी कड़ी अब सामने लाई जानी चाहिए, ताकि रिश्तों में संवेदनशीलता और संतुलन दोनों बनाए जा सकें।
पुरुष क्यों संघर्ष करते हैं?
जब पत्नी, बहन या सहकर्मी अचानक चिड़चिड़ी, थकी हुई, भावुक या चिंतित लगती हैं, तो पुरुष इसे व्यक्तिगत ले लेते हैं।वो समझ ही नहीं पाते कि ये बदलाव हार्मोन के कारण हैं, व्यवहार के कारण नहीं। बहुत से पुरुष बताते हैं कि उन्हें समझ नहीं आता कैसे मदद करें दूरी बनानी है या करीब आना है।इस उलझन से उनकी अपनी mental health भी खराब होती है चिंता, झुंझलाहट और भावनात्मक दूरी बढ़ जाती है।

बातचीत क्यों ज़रूरी है?
क्योंकि मेनोपॉज़ अकेले महिला को नहीं, रिश्ते को प्रभावित करता है। अगर पुरुष समझें कि ये mood swings नहीं, hormonal shifts हैं। ये थकान आलस नहीं, metabolic slowdown है। ये दूरी प्यार की कमी नहीं, emotional overwhelm है। तो सपोर्ट आसान हो जाता है और रिश्ते मज़बूत होते हैं।
पुरुष क्या कर सकते हैं?
पूछें, पर दबाव न डालें: “कैसा महसूस कर रही हो?” ये पाँच शब्द चमत्कार कर सकते हैं।
व्यक्तिगत न लें: उसका खराब दिन आपके बारे में नहीं है।

घर का mental load बांटें: छोटी-छोटी मदद planning, kids, खाने की जिम्मेदारी बड़ा फर्क लाती है।
खुद भी पढ़ें-सिखें: 10 मिनट के वीडियो या लेख पुरुषों की समझ बदल सकते हैं।
धैर्य रखें: Hormones stabilize होते हैं, लेकिन सपोर्ट याद रहता है।
मेनोपॉज़ सिर्फ़ महिलाओं का अनुभव नहीं है; इसका प्रभाव उनके साथी और पूरे परिवार पर भी पड़ता है। इस आर्टिकल में पुरुषों की मानसिक चुनौतियों और उनके अनुभवों पर भी रोशनी डाली गई है।