बीरूबाला रभा अब किसी पहचान की मोहताज नहीं। 2021 के पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद अब हर कोई उनके नाम के बारे में जान गया है। वह लगभग 15 साल से जादू टोने और डायन के नाम पर महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार के खिलाफ लड़ रही हैं।
6 साल की उम्र में हुआ पिता का निधन
आसाम के ठाकुरकाला गांव की रहने वाली आदिवासी महिला बीरूबाला जब 6 साल की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया। आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ाई छोड़नी पड़ी। घर का खर्च चलाने के लिए वह अपनी मां के साथ खेतों में काम करने लगीं। बीरूबाला महज 15 साल की थीं, तो एक किसान से उनकी शादी कर दी गई।
ऐसे छेड़ा जादू टोने के विरोध में अभियान
साल 1980 में उनके बेटे को जब टाइफायड हुआ तो वह उसके इलाज के लिए नीम-हकीम के पास पहुंची। नीम-हकीम ने कहा कि उनका बच्चा बच नहीं सकता लेकिन बच्चे की जान बच गई। इसके बाद बीरूबाला का इन नीम-हकीमों पर से विश्वास उठ गया और उन्होंने ऐसे लोगों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया।