कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष में एकादशी को तुलसी विवाह यानि देवउठनी या देवोत्थान एकादशी मनाई जाती है। हिंदू धर्म में इसके काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह एक मांगलिक और आध्यात्मिक पर्व है। इस शुभ दिन पर उनका विवाह तुलसी माता के साथ किया जाता है। चलिए आपको बताते हैं इस दिन का महत्व और शुभ मुहूर्त...
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह एकादशी और द्वादशी दोनों तिथियों में किया जाता है इसलिए यहां दोनों का समय दिया गया है।
एकादशी तिथि प्रारंभ - 25 नवंबर 2020, बुधवार सुबह 2:42 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त - 26 नवंबर 2020, वीरवार शाम 5:10 पर
तुलसी विवाह तिथि - गुरुवार, 26 नवंबर 2020
द्वादशी तिथि प्रारंभ - 05:09 बजे (26 नवंबर 2020) से
द्वादशी तिथि समाप्त - 07:45 बजे (27 नवंबर 2020) तक
एकादशी व्रत और पूजा विधि
1. सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। फिर भगवान विष्णु की अराधना करके दीप-धूप जलाएं और उन्हें फल, फूल और भोग लगाएं। ध्यान रखें कि भगवान इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी जरूर अर्पित करें।
2. शाम को भगवान विष्णु की अराधना और विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। इसके बाद पूर्व संध्या में सात्विक भोजन करें। अगली सुबह व्रत खोलने के बाद ब्राहम्णों को दान-दक्षिणा आदि दें।
क्यों किया जाता है तुलसी विवाह?
भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु 4 महीने बाद नींद से जागते हैं, जिसके बाद वह माता तुलसी यानि वृंदा की प्रार्थना ही सबसे पहले सुनते हैं इसलिए इस दिन उनका विवाह तुलसी संग किया जाता है।
श्रीहरि और तुलसी विवाह कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस कन्या तुसली या वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। उनका विवाह पकाक्रमी असुर जलंधर के साथ हुआ था। एक पतिव्रता स्त्री होने के कारण जलंधर अजेय हो गया था और देवलोक में आतंक मचाने लगा था। तब देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और मदद की गुहार लगाई। तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इसके बाद जलंधर की शक्ति खत्म हो गई और वह युद्ध में मारा गया।
भगवान विष्णु के छल पर वृंदा ने कहा कि मैंने आपकी सच्चे मन से आराधना की और आपने मेरे साथ ऐसा कृत्य किया। वृंदा माता ने भगवान विष्णु को श्राप देते हुए कहा कि आप पाषाण बन जाए। उनके श्राप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए और धरती का संतुलन बिगड़ने लगा। तब देवताओं ने माता वृंदा से श्राप वापिस लेने की प्रार्थना की और देवी ने अपना श्राप वापिस ले लिया।
परंतु भगवान विष्णु अपने छल से लज्जित थे इसलिए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर में प्रविष्ट किया, जिसे शालिग्राम कहा जाता है। भगवान विष्णु को श्रापमुक्त करने के लिए माता वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई और उनकी राख से एक पौधा निकला। भगवान विष्णु ने उस पौधे को तुलसी का नाम दिया और वरदान देते हुए कहा कि मैं कोई भी प्रसाद तुलसी के बिना ग्रहण नहीं करूंगा। मेरे शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी के साथ होगा। बस तभी से हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी-श्रीहरि विवाह किया जाता है।
मंगलाष्टक से करें तुलसी विवाह
सभी हिंदू रीति-रिवाजों के अलावा तुलसी विवाह में मंगलाष्टक मंत्रों का उच्चारण भी करें। मान्यता है कि इससे वातावरण शुद्ध, मंगलमय व सकारात्मक होता है। जिस घर में बेटियां नहीं है कि वह तुलसी विवाह कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। विवाह आयोजन हिंदू रीति-रिवाज जैसा ही होता है।