हर साल फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष एकादशी को आमलकी एकादशी मनाई जाती है। मान्तयता है कि इस शुभ दिन पर श्रीहरि की पूजा व व्रत रखने से मनोकामना की पूर्ति होती है। इस बात यह व्रत 24 मार्च को रखा जाएगा। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा होने से इसे आंवला एकादशी' और 'आमलक्य एकादशी' भी कहा जाता है। तो चलिए जानते हैं इस व्रत की कथा व महत्व...
आमलकी एकादशी व्रत कथा
कोई भी व्रत उसी कथा पढ़े बिना पूरा नहीं होता है। ऐसे में आज हम आमलकी एकादशी की व्रत कथा बताते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई थी। ऐसे में एक दिन ब्रह्मा जी के मन में उनकी उतपत्ति का प्रश्न आया। इसका उत्तर जानने के लिए उन्होंने परब्रह्म की तपस्या की। फिर ब्रह्म जी की भक्ति व तपस्या से खुश होकर विष्णु जी ने उन्हें दर्शन दिए। उसके बाद भगवान को खुद के सामने देखकर ब्रह्म जी खुशी से रोने लगे। साथ ही उनके आंसू श्रीहरि के चरणों पर गिरे। साथ ही उन आंसूओं से आमकली यानी आंवला का पौधा प्रकट हुआ।
उसके बाद श्रीहरि ने कहा कि आज से आंवला उनका अतिप्रिय पौधा रहेगा। साथ ही जो भी आमकली एकादशी के दिन आंवले पेड़ की सच्चे मन से पूजा करेगा उसके सारे पाप दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होगी।
आंवले वृक्ष का महत्व
श्रीहरि को अतिप्रित होने से आंवला का वृक्ष दुखों को हरने वाला माना जाता है। इसकी पूजा करने से पापों व जीवन की समस्याएं दूर होकर शुभ फल की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इसके मूल भाग में त्रिदेव यानी भगवान विष्णु, ब्रह्मा और भोलेनाथ निवास करते हैं। वहीं इसकी शाखाओं में मुनि, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु और फलों में सभी प्रजापति वास करती है। ऐसे में आंवले की पूजा करने से भगवान की असीम कृपा मिलती है।
श्रीहरि ने दिया वरदान
श्रीहरि के प्रसन्न होने पर सभी ऋषियों ने स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति का वरदान मांगा। तब भगवान जी ने कहा कि जो भी फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी का व्रत रखेगा। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होकर मोक्ष की प्राप्ति होगी।