बैखौफ होकर ट्वीटर पर अपने बेबाक बयानों से सबको चौंकाने वाले ऋषि कपूर हमेशा हमारे दिल में जिंदा रहेंगे। आखिरी वक्त तक वो अपने आस-पास के लोगों को मुस्कराने के लिए उकसाते रहे यही-नहीं वो लोगों का मनोरंजन करते रहे। उनकी आखिरी वीडियो में भी वो सबको मेहनत करने का ही सीख दे कर गए। हर इंसान की कुछ आखिरी ख्वाइशें होती है, उनकी भी थी। इसी साल एक इंटरव्यू में ऋषि कपूर ने अपनी दो तमन्नाओं के बारे में बताया था। वे चाहते थे कि उनकी ये दो तम्मनाएं जीते जी पूरी हो जाए लेकिन कोई नही जानता था कि वो इस तरह सब को अचानक छोड़ जाएंगे और उनकी ख्वाहिशें यू हीं अधूरी रह जाएंगी।
उनकी पहली ख्वाहिश थी कि वो अपने पूरे परिवार के साथ अपनी पेशावर की पुश्तैनी हवेली देखें। उन्होंने इंटरव्यू में कहा था कि "मैं अपने बच्चों को पेशावर की ये हवेली दिखाना चाहता हूं,मेरे पिताजी, माताजी, दादाजी, सभी का जन्म पेशावर में हुआ था और मेरा मुंबई में...ऐसे में मैं अपने बच्चों को पुश्तैनी हवेली से रूबरू कराना चाहता हूं...अगर कभी मौका मिला तो जरूर हवेली देखने जाएंगे और नहीं मिला तो मैं ये चाहूंगा की मेरे बेटे रणबीर के बच्चे जरूर जाकर देखें कि हमारी शुरुआत इस जगह से हुई थी..."मुझे बस एक बात कभी समझ मैं नहीं आई कि मेरे पिताजी और दादाजी अमीर लोग नहीं थे, वह बहुत ही आम लोग थे....ऐसे में मुझे समझ नहीं आया कि वह हवेली के मालिक कैसे बन गए साल 1990 में मैं पेशावर हवेली देखने जा चुका हूं, जहां पर हमें बताया गया था ये मेरे पिताजी और दादाजी का जन्म स्थान है। ख़ैर यह ख्वाइश अब रणबीर ही पूरी करेंगे। आपको बतादें कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा था- "हमें ऋषि कपूर ने फोन किया था...उन्होंने अपने पेशावर स्थित घर को किसी संस्थान या म्यूजियम में बदलने की गुजारिश की थी, हमने इस मांग को स्वीकार कर लिया है.."वहीं उनकी दूसरी ख्वाइश थी कि 'मैं भी चाहता हूं कि रणबीर अब घर बसा ले, मैं भी चाहता हूं कि उसके बच्चे हों और वो अपना घर बसा ले...'
कैसा है हवेली का हाल
'कपूर हवेली' के नाम से मशहूर यह हवेली पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार में है। यह कपूर खानदान की शुरुआत की नीव है। भला इसे कोई कैसे भूल सकता है। यह हवेली 1918 से लेकर 1922 के बीच तैयार हुई है। जो अपने आप में एक इतिहास है। यह हवेली इस बात का प्रतिक है कि राजा या प्रजा सिर्फ इतिहास का हिस्सा नहीं होते बल्कि कला ही वो राजा है जिससे इतिहास रचा जा सकता है। भूकंप के कारण, ऊपरी हिस्से में दरारें पैदा हो गई थी इसलिए 20 साल पहले इस हवेली की ऊपरी तीन मंजिलों को गिरा दिया गया था। रिपोर्ट्स के अनुसार 'पांच मंजिल में से तीन मंजिल सालों पहले ढह गई थीं, लेकिन अभी भी लगभग 60 कमरे बचे हुए है।