पैसे कमाने की चाह में आजकल ज्यादातर युवा विदेशों का रुख कर लेते हैं। कुछ युवा तो सरकारी नौकरी और मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर भी विदेश सेटल होने चले जाते हैं। हालांकि कुछ युवा देश की माटी की कीमत को अच्छी तरह पहचानते भी हैं। उन्हीं में से एक हैं IPS इल्मा अफरोज जो विदेश की नौकरी छोड़ भारत माता की सेवा करने लौट आईं।
पिता ने दिया उड़ने का हौंसला
मुरादाबाद के कुंदरकी कस्बे की रहने वाली इल्मा का जन्म एक ऐसी ही मानसिकता वाले इलाके में हुआ जहां बेटियों की पढ़ाई पर खर्च को बेफिजूल समझा जाता था। लोगों का मानना है कि बेटियां तो पराई है फिर उनकी पढ़ाई पर खर्च क्यों किया जाए लेकिन इल्मा भाग्यशाली रही। उनके पिता एक साधारण किसान है। किसान के परिवार की जरूरतें भी बहुत मुश्किल से पूरा हो पाती थी , फिर भला ऐसे परिवार में उनकी पढ़ाई पर कौन ध्यान देता। मगर, इल्मा के पिता फसल काटने के बाद जो पैसे मिलते , उससे सबसे पहले इल्मा की स्कूली जरूरतें जैसे पेंसिल, कॉपी और किताबों का बंडल लाया जाता और फिर बाकी जरूरतें पूरी होती।
माँ ने अकेले किया इल्मा और उनके भाई का पालन
मगर, 14 साल की उम्र में कैंसर के चलते इल्मा के पिता का निधन हो गया और उनकी मां खेतों में काम करके घरखर्च चलाने लगी। इल्मा को पढ़ते देख लोग तंज कसते थे कि लड़की को सिर नहीं चढ़ाना चाहिए, आखिर उन्हें पराए घर ही तो जाना है ।’ मगर, जब आपका परिवार साथ खड़ा हो तो लोगों की बातें मायने नहीं रखती। इल्मा की मां उन्हें हमेशा समझाती थी कि चाहे कठिनाइयां चाहे जितनी भी हो लेकिन तुम्हारा ध्यान अर्जुन केवल लक्ष्य पर होना चाहिए
मोमबत्ती की रोशनी में करती थी पढ़ाई
इल्मा बताती हैं, 'मेरी मां ने हमें बहुत संघर्ष से पाला है। वह बहुत मजबूत महिला हैं।' इल्मा बताती है कि उनके आस-पास रहने वाले बच्चे जहां IIT और MBBS की कोचिंग लिया करते थे वहीं वो मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करती थीं।
बचपन से ही थी निडर और साहसी
इल्मा की परिस्थितियों ने भी उन्हें निडर और सहासी बना दिया था। जब वह एक बार DM के ऑफिस छात्रवृति लेने गई तो उन्हें दरवाजे से ही बच्चा कहकर भगा दिया गया। मगर, इल्मा सीधे DM के ऑफिस जा घुसी और अपनी बात कही। इसपर डीएम मुस्कुरा दिए और उनके फार्म पर साइन भी कर दिए। इसके साथ ही उन्होंने इल्मा को सिविल सर्विसेज ज्वॉइन करने की सलाह दी, जिसने उन्हें एक नई दिशा दी।
विदेश में पढ़ने के लिए मिली स्कॉलरशिप पर नहीं थे टिकट के पैसे
हालांकि इल्मा ने उनकी इस बात पर ज्यादा गौर नहीं किया और दिल्ली जाकर आगे की पढ़ाई की। दर्शनशास्त्र में B.A. ऑनर्स की डिग्री लेने के बाद उन्हें छात्रवृति मिली, जिससे उन्हें इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका। हालांकि घर के हालत ठीक ना होने के कारण उनके पास विदेश जाने के पैसे नहीं थे लेकिन वह जैसे तैसे इंतजाम कर इंग्लैंड पहुंची।
कामयाबी मिली मगर देश नहीं भूली
इंग्लैंड से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह न्यूयार्क में एक्पीरियंस लेने चली गई। उनके पास Financial Estate में अच्छी जॉब का ऑफर भी था लेकिन विदेश में ऐशों-आराम और अच्छी जॉब के बावजूद भी उन्हें कुछ कमी लग रही थी। छुट्टियों में जब भी वह घर आती तो अपने लोगों की मेहनत और परेशानियां देखती। फिर क्या... उन्होंने भारत लौटने का मन बनी लिया।
लोगों की मदद के लिए ज्वॉइन की सिविल सर्विसेज
भारत लौटकर इल्मा ने लोगों की मदद करने का फैसला किया और इसके लिए उन्होंने सबसे पहले सिविल सर्विसेज ज्वॉइन की। उनकी मेहनत रंग लाई और साल 2017 में इल्मा ने 217 रैंक से यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। फिलहाल उन्हें हिमाचल प्रदेश कैडर सौंपा गया है और आज वह अपने देश व लोगों की सेवा कर रही हैं।
इल्मा चाहती तो विदेश में रहकर ढेंरों पैसे कमा सकती थी लेकिन वह अपने देश के लिए कुछ अच्छा करना चाहती थी। देश की सेवा के लिए उन्होंने विदेश की नौकरी छोड़ दी जो हर युवा के लिए प्रेरणा है।