हिंदी सिनेमा में ऐसे कई एक्टर्स रहे हैं जिन्होंने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से लोगों के दिलों में अलग जगह बनाई। इन्हीं में से एक थे भगवान दादा। भगवान दादा इंडियन सिनेमा के पहले डांसिंग सुपरस्टार थे। एक वक्त में वो रोज फिल्म के सेट पर नई कार से जाते थे लेकिन अपने आखिर वक्त उन्हें चॉल में रहना पड़ा। अपनी एक गलती की वजह से उन्हें अपना बंगला और गाड़ियां सब बेचनी पड़ी। आज के इस पैकेज में हम आपको बताते है कि क्यों बेशुमार दौलत के मालिक भगवान दादा को आखिरी सांसे चॉल में लेनी पड़ी।
एक्टिंग से पहले किया मजदूरी का काम
भगवान दादा का जन्म 1913 में महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनका बचपन दादर और परेल के मजदूर इलाके में बीता। एक्टिंग से पहले वो एक कपड़ा मिल में मजदूर के रूप में काम करते थे। दरअसल, चौथी क्लास में ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और एक कपड़े की मिल में मजदूर के रूप में काम करने लगे। इसी दौरान उनका झुकाव एक्टिंग की ओर हुआ। उन्होंने मूक सिनेमा के दौर में फिल्म 'क्रिमिनल' से डेब्यू किया। भगवान दादा कॉमेडी के बादशाह थे। एक्टिंग के बाद उन्होंने फिल्म निर्देशन में हाथ आजमाया। साल 1951 में उन्होंने फिल्म 'अलबेला' का निर्माण किया।
भगवान दादा के डांस को अमिताभ बच्चन, गोविंदा और मिथुन ने भी फॉलो किया। फिल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ के वक्त अमिताभ को डांस नहीं आता था। फिल्म के एक गाने देखा न हाय रे सोचा न हाय रे रख दी निशाने पे जां.. पर एक्टर को डांस करना था लेकिन वो कर नहीं पा रहे थे। ऐसे में अमिताभ ने एक डांस स्टाइल बनाया जो भगवान दादा के स्टाइल से मिलता-जुलता था। अमिताभ के अलावा गोविंदा और मिथुन भी भगवान दादा से इंस्पिरेशन ली।
हर दिन एक नई कार से सेट पर जाते थे भगवान दादा
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भगवान दादा कारों के शौकीन थे। उनके पास 7 कारें थी और वो हर रोज नई कार के साथ सेट पर जाया करते थे। कहा तो यह भी जाता है कि उनके डायरेक्शन की एक फिल्म के एक सीन में पैसों की बारिश दिखानी थी, इसके लिए उन्होंने असली नोटों का इस्तेमाल किया था। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके पास कितनी दौलत थी लेकिन एक गलती की वजह से महलों में रहने वाले भगवान दादा चॉल में पहुंच गए।
दरअसल, भगवान दादा ने एक फिल्म बनाई 'हंसते रहना' । इस फिल्म में उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी लेकिन किशोर कुमार के नखरों की वजह से यह फिल्म पूरी ना हो सकी। इससे दादा को इतना नुकसान हुआ कि उन्हें जुहू स्थित बंगला और अपनी कारें बेचनी पड़ीं। आर्थिक तंगी की वजह से दादा को मुंबई की चॉल में गुजारा करना पड़ा। 4 फरवरी 2002 को हार्ट अटैक से भगवान दादा का निधन हो गया।
भगवान दादा अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन ताउम्र उन्हें एक बात का अफसोस रहा। दरअसल, उनकी वजह से ललिता पवार का पूरा चेहरा बिगड़ गया। फिल्म 'जंग-ए-आजादी' की शूटिंग के दौरान भगवान दादा को ललिता पवार को एक थप्पड़ मारना था लेकिन उन्होंने थप्पड़ इतनी जोर से मार दिया कि ललिता चोटिल हो गईं। उनकी बाईं आंख की एक नस अंदर से फट गई और उनके मुंह के बाईं ओर लकवा मार दिया। तीन साल के इलाज के बाद भी उनकी आंख ठीक नहीं हुई।इसके बाद से ही ललिता ने निगेटिव रोल करना शुरू किया था। इस बात का अफसोस भगवान दादा को ताउम्र रहा।