दिल्ली उच्च न्यायालय ने अन्नाद्रमुक की पूर्व नेता शशिकला पुष्पा की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा है कि महिलाओं का स्थान ऊंचा है और उनकी निजता का उल्लंघन करने वाली तस्वीरों की इजाजत नहीं दी जा सकती है। शशिकला ने उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें उनके इस दावे को खारिज कर दिया गया था कि सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति के साथ कथित रूप से छेडछाड़ कर डाली गयी। उनकी तस्वीर और वीडियो से उनकी छवि धूमिल की जा रही है।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी तरह महिला का शील भंग करना अपराध है। फेसबुक, गुगल और यूट्यूब ने दलील दी कि वे महज मध्यवर्ती संस्थाएं हैं और वे अपने मंचों पर कोई सामग्री नहीं डालते। शशिकला ने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी है और खंडपीठ से आपत्तिजनक फोटो हटाने का निर्देश देने एवं एकल न्यायाधीश द्वारा उनपर लगाये गए जुर्माने को दर किनार करने की अपील की है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की खंडपीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘ हम महिलाओं को ऊंचे मुकाम पर रखते हैं। हमें ऐसा कोई फोटोग्राफ नहीं पसंद है जो उनकी निजता भंग करता हो।'' खंडपीठ ने सोशल मीडिया से अपने मंचों से इन घातक सामग्री को हटाने को कहा।
न्यायालय ने कहा, ‘‘अब और कोई कीचड़बाजी नहीं। इस पर विराम लगाइए।'' खंडपीठ ने संबंधित पक्षों के वकीलों से हटाये जाने वाली सामग्री पर चर्चा करने को कहा और इस मामले की अगली सुनवाई 8 जुलाई तय की। एकल पीठ ने 2 जून को अपने आदेश में कहा था कि लोगों को यह जानने का हक है कि उनके चुनावी प्रतिनिधि बंद दरवाजे के पीछे किससे मिल रहे हैं और क्या साठगांठ कर रहे हैं। एकल पीठ ने कहा था कि फोटो हटाने के अनुरोध पर सोशल मीडिया के खिलाफ नेता किसी भी राहत के पात्र नहीं हैं। उन्हें फेसबुक इंक, गूगल एलएलसी और यूट्यूब एलएलसी को दो- दो लाख रूपए का भुगतान करने का निर्देश दिया था। वर्ष 2016 में याचिका दायर करते समय अन्नाद्रमुक से निष्कासित राज्यसभा सांसद शशिकला इस साल अप्रैल में भाजपा में शामिल हो गयीं।