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मिलिए डॉ. हृदेश से, जिन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ उठाया घुमंतू बच्चों का जिम्मा

  • Edited By Bhawna sharma,
  • Updated: 07 Aug, 2020 12:55 PM
मिलिए डॉ. हृदेश से, जिन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ उठाया घुमंतू बच्चों का जिम्मा

भारत में सरकारी नौकरी को बहुत महत्व दिया जाता है। लेकिन एक ऐसी महिला भी है जिन्होंने सरकारी नौकरी को छोड़ कर घुमंतू जाति के बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया। जी हां, हम बात कर रहे हैं आगरा की रहने वाली डॉ. हृदेश चौधरी की जिन्हें साल 2014 में यूपी सरकार और हिंदी अखबार हिंदुस्तान ने इस नेक काम के लिए मलाला अवार्ड से सम्मानित किया था। वह एक सोशल एक्टिविस्ट और लेखिका भी हैं।

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छोड़ दी सरकारी टीचर की नौकरी

डॉ. हृदेश चौधरी केंद्र सरकार के शिक्षक के रूप में नौकरी कर रही थी। लेकिन उन्होंने गाड़िया लौहार जिसे घुमंतू यानि खानाबदोश जाति भी कहा जाता है कि बच्चों को शिक्षित करने के लिए साल 2013 में नौकरी से इस्तिफा दे दिया। बात साल 2011 की है जब गर्मियों की छुट्टीयों में डॉ. चौधरी ने सड़क किनारे खेलते बच्चों को देखा जो 'गाड़िया लोहार' समुदाय से थे। जिसके बाद उन्होंने इन बच्चों को शिक्षित करने का ठान लिया। उनका कहना था कि अगर ये बच्चे शिक्षित नहीं हुए तो इस जाति के लोग ऐसे ही बेरोजगारी, भूखमरी की तरफ बढ़ते रहेंगे। 

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घुमंतू पाठशाला और आराधना संस्था की स्थापना 

इस नेक काम में डॉ. चौधरी के पति के एस चौधरी (डीजीएम, इंडियन ऑयल) ने उनका साथ दिया। डॉ. हृदेश चौधरी ने घुमंतू पाठशाला और आराधना संस्था की स्थापना की ताकि वह उन बच्चों को शिक्षा दे सकें। इस संस्था में खानाबदोश बच्चों को एक साल तक शिक्षा दी जाती है। जिसके बाद वह किसी भी स्कूल में भर्ती हो सकते हैं। इस एक साल में बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेते हैं इसके साथ ही वे पढ़ना-लिखना सीखते हैं। वे अनुशासन में रहना और समय के महत्व को समझना शुरू कर देते हैं। बच्चों को यूनिफॉर्म, खाना, स्टेशनरी आदि संस्था की तरफ से मुफ्त में दी जाती हैं।

कई चुनौतियों का करना पड़ा सामना

डॉ. चौधरी बताती हैं कि इन बच्चों को स्कूल तक ले जाने के लिए बच्चों के माता-पिता से मिलने फुटपाथ पर और झुग्गी-झोंपड़ियों में जाना पड़ता था। साथ ही उन्हें घंटों तक बच्चों को स्कूल भेजने के लिए समझाना पड़ता था। कई बार वे एक बार में नहीं मानते थे, तो मुझे अगले दिन उनसे बात करने फिर से जाना पड़ता था। वह आगे कहती हैं कि अब जब उन बच्चों के माता-पिता उन्हें पढ़ते हुए, अच्छे कपड़ों में और उनके बोलने के तरीके को देखते हैं तो कहते हैं कि आपने इनका जीवन संवार दिया है।

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छात्र इंटर्नशिप के लिये आते हैं 

डाॅ चौधरी बताती हैैं कि घुमंतू पाठशाला में देश के बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों के स्टूडेंट्स इंटर्नशिप करने के लिए आते हैं और उन शिक्षण संस्थाओं के मुख्य हर रोज मुझ से इंटर्नशिप करने आए अपने स्टूडेंट्स की रिपोर्ट मांगते है। इसके साथ ही वह मुझ से इंटर्नशिप कराने का अनुरोध करते है तो बेहद खुशी होती है।

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