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Success Story: औरत होने के कारण कभी नहीं मिली थी नौकरी, आज करोड़ की मालकिन किरण मजूमदार

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 12 Mar, 2021 02:45 PM
Success Story: औरत होने के कारण कभी नहीं मिली थी नौकरी, आज करोड़ की मालकिन किरण मजूमदार

घर का काम हो या ऑफिस... आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चल रही हैं। मगर, एक समय ऐसा भी था जब महिलाओं को केवल चूल्हा-चौंके के योग्य समझा जाता था। इसी के चलते आज की फेमस बिजनेवुमन को भी कभी नौकरी नहीं मिल पा रही थी लेकिन आज वह जिस मुकाम पर हैं उससे साबित होता है कि महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं।

पावरफुल वुमेन लिस्ट में दूसरा स्थान

बिजनेसवुमन किरण मजूमदार-शॉ बायोकॉन की डायरेक्टर और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। इसके अलावा वह सिनजीन इंटरनेशनल लिमिटेड और क्लिनिजीन इंटरनेशनल लिमिटेड की डायरेक्टर हैं। फोर्ब्स मैगजीन की 17वीं वार्षिक 100 सबसे पावरफुल वुमेन लिस्ट उन्हें 68वां स्थान मिला है।

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महिला होने के कारण कभी नहीं मिली थी नौकरी

देश की सबसे बड़ी बायोफार्मा कंपनी में से एक बायोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ का नाम आज दुनिया की 100 सबसे ताकतवर महिलाओं की फोर्ब्स लिस्ट में शामिल है। मगर, करियर की शुरुआत में उन्हें सिर्फ इसलिए नौकरी नहीं मिल रही थी क्योंकि वो एक 'महिला' हैं।

ऑस्ट्रेलिया से ली मास्टर्स की डिग्री लेकिन...

25 साल की उम्र में वह ऑस्ट्रेलिया से ब्रूइंग से मास्टर्स की डिग्री लेकर वापिस भारत आईं थीं और भारत की कई बीयर कंपनियों में आवेदन दिया। योग्यता होने के बावजूद कंपनियों में उन्होंने रखने से मना कर दिया। सभी ने कहा कि 'उन्हें लेना संभव नहीं है।' मगर, उन्होंने हार मानने की बजाए संघर्ष किया और अपनी कंपनी बनाकर शुरुआत की। आज बायोकॉन का मार्केट कैप करीब 37,000 करोड़ रुपए है। 

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कम उम्र, लिंग के कारण बैंक ने भी नहीं दिया था लोन

कम उम्र, लिंग और बगैर परखे गए व्यापार मॉडल के कारण शुरूआत में उन्हें कोई भी बैंक लोन देने के लिए तैयार नहीं था। मगर, सभी चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने उत्पादों के अच्छी तरह से संतुलित व्यापार पोर्टफोलियो व डायबिटीज, कैंसर और सेल्फ रेजिस्टेंस बीमारियों पर केंद्रित शोध के साथ इसे एक औद्योगिक एंजाइमों की निर्माण कंपनी से रूप में विकसित किया।

एक ट्रेनी मैनेजर के रूप में शुरू किया था करियर

1978 में वह आयरलैंड के कॉर्क के बायकॉन कैमिकल्स लिमिटेड से एक ट्रेनी मैनेजर के रूप में जुड़ीं, जहां उन्हें महीने में 10,000 रुपए मिलते थे। उसी साल उन्होंने बंगलौर के किराए के मकान के गैरेज में बायोकॉन कंपनी की शुरूआत की। उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और पर्यावरण कार्यक्रम संचालित करने के र्लिए 2004 में बायोकॉन फाउंडेशन शुरू किया, जिसके तहद सूक्ष्म-स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम ने 70,000 ग्रामीण सदस्यों का नामांकन किया गया है।

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आज हैं देश की नामी हस्ती

किरण मजूमदार-शॉ भारत सरकार की एक स्वायत्त निकाय इंडियन फार्माकोपिया कमीशन के प्रबंध निकाय और सामान्य निकाय की सदस्य हैं। वह स्टेम सेल बायोलॉजी एंड रिजेनरेटिव मेडिसीन के लिए बने संस्थान की सोसाइटी की संस्थापक सदस्य भी हैं। इसके अलावा उन्हें वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा व्यापार मंडल और विदेश व्यापार महानिदेशालय की सदस्य के रूप में नॉमिनेट किया गया है। वह भारत सरकार के नेशनल इनोवेशन काउंसिल की एक सदस्य और बंगलौर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रशासक मंडल की सदस्य हैं।

उपलब्धियां

निक्की एशिया पुरस्कार (2009), एक्सप्रेस फार्मसूटिकल लीडरशिप समिट अवार्ड (2009), सक्रिय उद्यमी के लिए इकोनॉमिक टाइम्स का ‍'साल की महिला व्यवसायी' (2004), अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन द्वारा 'कॉर्पोरेट लीडरशिप अवार्ड'(2005), एशिया के आर्थिक विकास के लिए क्लिक्क्वाट वयूवे इनिसिएटिव पुरस्कार, जीव विज्ञान और स्वास्थ्य देखभाल के लिए अर्न्स्ट एंड यंग का साल का उद्यमी पुरस्कार (2002), व्लर्ड इकोनॉमिक्स फोरम द्वारा 'टेक्नोलॉजी पायोनियर' की मान्यता उपलब्धियों से सम्मानित किया जा चुका है।

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निजी जिंदगी

उन्होंने जॉन शॉ बायोकॉन लिमिटेड के वाइस प्रेसिडेंट जॉन शॉ से शादी की। उन्हें कला में खास रूचि है इसलिए आपको उनके पास चित्रों और कला का विशाल संग्रह मिलेगा। इसके अलावा वह 'एक कॉफी टेबल', 'एले एंड आर्टि', 'द स्टोरी ऑफ बीयर' जैसी किताबें भी लिख चुकी हैं।

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