दुनियाभर में कोरोना मरीजों को ठीक करने के लिए दवाओं का सहारा लिया जा रहा है। हालांकि महामारी को खत्म करने के लिए लोगों की नजरें वैक्सीन पर टिकी है। कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए क्लिनिकल से लेकर ह्यूमन ट्रायल तक किए जा रहे हैं। मगर, क्या आप जानते हैं कि दवाओं से ज्यादा वैक्सीन असरदार क्यों होगी।
इलाज के लिए कोई एक दवा स्वीकृत नहीं
कोरोना के इलाज के लिए देश-विदेश में सर्दी, वायरल बुखार, इंफैक्शन जैसी ढेरों दवाएं उपलब्ध हैं लेकिन इन्हें सिर्फ बीमारी के लक्षण को खत्म करने के लिए किया जा रहा है। इस बात कोई सबूत नहीं है कि यह दवाएं कितनी कारगार है। ये सभी दवाएं सार्स-कोव-2 जैसे वायरस को ध्यान में रखकर बनाई गई है इसलिए ये दवाएं अस्थाई है।
हर किसी के लिए दवा कारगर नहीं
भले ही कोरोना के लिए लॉन्च हुई दवाओं से मरीज ठीक हो रहे हो लेकिन ये हर किसी पर असर नहीं करती। दुनियाभर में कोरोना के कारण लाखों लोग अपनी जान भी गवां बैठे हैं। डेक्सामेथासोन और रिडेलिवर एक एंटी-वायरल दवा है, जो सिर्फ कोरोना लक्षणों को कम करती है और इम इम्यूनिटी बढ़ाती है, ताकि मरीज के शरीर को वायरस से लड़ने की ताकत मिले।
क्या प्लाज्मा थेरेपी है असरदार
भारत में कुछ मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी भी अजमाई जा रही है लेकिन यह भी पूरी तरह प्रभावी नहीं है। वहीं, स्पेन द्वारा लोगों पर अजमाई गई हर्ड इम्यूनिटी भी फेल रही है। ऐसे में इसे स्थाई इलाज मानना सही नहीं होगा।
दवाओं के साइड इफेक्ट का खतरा
कुछ मामलों में ऐसी दवाओं से एलर्जी के केस भी देखने को मिले है। कोरोना के इलाज में इस्तेमाल की जा रही हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (मलेरिया की दवा) से सबसे ज्यादा साइड-इफैक्ट के मामले सामने आए हैं। इन दवाओं से दिल और फेफड़े को नुकसान होने के संकेत मिले हैं।
क्या वैक्सीन से होगा पक्का इलाज
कोरोना वैक्सीन बनाने की रेस में 180 देश शामिल है, जिसमें सीरम इंस्टीट्यूट कंपनी का नाम भी शामिल है, जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर वैक्सीन तैयार कर रही है। वैक्सीन की बात करें तो इससे कोरोना के लक्षणों नहीं बल्कि वायरस को खत्म करने के लिए बनाया जा रहा है। ऐसे में अगर वैक्सीन बनाने में सफलता मिल जाती है तो यह कोरोना की जंग में बड़ी जीत साबित हो सकती है।