अक्सर आपने देखा होगा कि शादी के दौरान पत्नी को पति के वामांग यानि बाईं तरफ बैठने के लिए कहा जाता है। बड़े-बजुर्ग भी अक्सर कहते हैं कि पत्नी को पति के बाईं तरफ ही बैठना चाहिए लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है? चलिए आपको बताते हैं कि इसकी वजह
पत्नी क्यों बैठती है पति के बाएं तरफ?
मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्माजी के दाएं स्कंध से पुरुष और वाम स्कंध से स्त्री की उत्पत्ति हुई है इसलिए औरतों को वामांगी यानि पति का बायां भाग माना जाता है। वहीं, ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, औरतों के बाएं और पुरुष के दाएं हिस्से को शुभ माना है। यही वह है कि विवाह के दौरान पत्नी को पति के बाएं भाग में बैठने के लिए कहा जाता है।
पत्नी कब बैठती हैं दाई तरफ?
हालांकि हिंदू धर्म में पुरुष प्रधान धार्मिक कार्यों में पत्नी पति के दक्षिण यानि दाएं भाग की ओर बैठती है। जबकि स्त्री प्रधान धार्मिक कार्यों के दौरान पत्नी पति के वाम अंग की तरफ ही बैठती है।
सिंदूरदान के समय किस ओर बैठे पत्नी
संस्कार गणपति में कहा गया है कि सिंदूरदान, भोजन करते समय, सोते समय और सेवा करते समय पत्नी को बाई तरफ ही रहना चाहिए। वहीं, मान्यता है कि सांसारिक कार्य यानि जो कर्म इह लौकिक होते हैं जैसे आशीर्वाद और ब्राह्मण के पैर पखारते समय भी पत्नी को बाई ओर ही रहना चाहिए। जबकि कन्यादान, शादी, यज्ञकर्म, पूजा या कोई धर्म-कर्म करते समय पत्नी को पति के दाई ओर बैठना चाहिए।
क्या है दाएं-बाएं का चक्कर?
भगवान शिव को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता क्योंकि उनके बाएं हिस्से से नारी की उत्पत्ती हुई थी। भगवान का यह रूप इस बात का संदेश है कि बिना पुरुष स्त्री के बिना अधूरा है और स्त्री पुरुष के बिना।
भगवान शिव हो जाते हैं नाराज
शिवपुराण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम को 14 साल का वनवास हुआ था तब देवी सती ने माता सीता का रूप धारण कर उनकी परीक्षा ली थी लेकिन भगवान राम ने माता सती को पहचान लिया। लेकिन जब देवी सति कैलाश लौंटी तो भगवान शिव नाराज हो जाते हैं। वह कहते हैं कि मेरे आराध्य देव की परिक्षा लेना उनका अपमान है। इससे आप भी अपने वामांगी होने का अधिकार खो चुकी हैं।