सालों से औरतों को अपने हक के लिए इस पुरुष प्रधान समाज में लड़ना पड़ रहा है। लेकिन आज भी कई क्षेत्र ऐसे है जहां पर न तो औरतों की कोई भागीदारी है और न ही सहूलियत। अब बात सरकारी नौकरियों की ही कर लें, जिसके बारे में आपने भी अपने मां-बाप से यह कहते हुए सुना होगा कि 'सरकारी नौकरी होगी तो आराम होगा।' सरकारी कर्मचारी यानि आप की नौकरी एक तरह से सुरक्षित नौकरी जिसे हर कोई पाना चाहता है लेकिन अगर हम आकड़ों की बात करें तो सरकारी नौकरियों में ही महिलाओं का आकड़ा 11% से कम है। केंद्र सरकार की अलग-अलग नौकरियों में औरतों की भागिदारी 30.87 लाख कर्मचारियों में से बस 10.93 प्रतिशत ही है।
यह आकड़ा देखकर सरकार ने बढ़ाई सुविधाएं
अब इतना कम आकड़ा देखकर तो सरकार ने भी ठान लिया कि महिलाओं की सुविधा पर जोर दिया जाए और उनके इस आकड़े पर काम किया जाए। सरकार ने 180 दिनों के लिए मैटरनिटी लीव, 730 दिनों के लिए बच्चों की देखभाल की छुट्टी,180 दिनों के लिए बच्चे को गोद लेने का अवकाश और विकलांग महिलाओं के लिए रिजर्वेशन एवं UPSC (Union Public Service Commission) और SSC (Staff Selection Commission) एग्जाम के शुल्क में भी छूट दी गई है। फिर भी महिलाओं का आकड़ा टस से मस नहीं हुआ।
क्यों नहीं करना चाहती महिलाएं सरकारी नौकरी?
भले ही महिलाओं के काम करने पर भारत की ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्शन (GDP) में बढ़ोतरी हो रही हो फिर भी महिलाएं नौकरी करना छोड़ देती है। एक कंपनी की सीईओ के हिसाब से मैटरनिटी लीव के बाद उन्होंने काम जारी तो किया मगर उन्हें नौकरी में करियर की प्रगति की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी। फिर उन्होंने अपनी नौकरी के जूनून का पीछा किया और खुशियों ने ठिकाना ढूंढ ही लिया। कई औरतें यह भी कहती है कि नौकरियों करना उनके हाथ में नहीं है। उन्हें आज भी परमिशन की जरुरत पड़ती है।
क्या कहती है World Bank?
World Bank का इस मामले में यह मानना है कि 20 मिलियन महिलाएं साल 2005 से 2012 में नौकरी छोड़ कर चली गई थी। वहीं 27 प्रतिशत एडल्ट भारतीय औरतें नौकरी की तलाश में रहीं। यही-नहीं औरतों का 24 प्रतिशत आकड़ा किसी भी काम से ड्राप आउट करने का भी बढ़ गया है।
गांव की तुलना में शहर में है कम वर्किंग वीमेन
आकड़े कहते है कि शहर में गांव की तुलना कम महिलाएं नौकरी करती है। अब आपको लग रहा होगा कि यह कैसे ? दरअसल, देखा जाए तो गांव में आबादी भी कम होती है और महिलाएं कृषि में भी अपने पतियों का हाथ बटाती है। वहीं सरपंच, स्कूल और हॉस्पिटल में वो पूरी भागीदारी निभाती है लेकिन शहर में आबादी भी ज्यादा होती है और हर औरत काम नहीं करती है। न ही वो एग्रीकल्चर सेक्टर में हेल्प करती है और न ही सरकारी जॉब। ऐसे में सिर्फ एक ही रिजल्ट सामने आता है और वो है शहर में महिलाएं कम जॉब्स पर जाती है।
नौकरी ना होने पर मर्दों से ज्यादा मुसीबतें उठाती है औरतें
देखा जाए तो कहा जाता है कि एक मर्द पूरा घर चलाता है। उसी पर पूरा घर निर्भर रहता है। लेकिन जब एक औरत काम नहीं करती तो उसे मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। वो सिर्फ किसी पर निर्भर ही नहीं बल्कि उसे अपनी हर जरुरत के लिए किसी और के सामने हाथ फैलाना पड़ता है।