मछली खाने के तुरंत बाद दूध का सेवन करने से, मूली के साथ दूध पीने से शरीर पर सफेद दाग यानि की विटिलोग हो सकते है। हमें ऐसे खाना नहीं खाना चाहिए। यह अवधारणाएं अकसर सुनने को मिलती है जब किसी के शरीर के हिस्से पर सफेद दाग देखने को मिलते है। लोग इसे बीमारी समझ कर लोगों से दूर या उन्हें खाने में परहेज करने को कहते हैं। इस समय समाज में इस पुरानी सोच को तोड़ने के जरुरत हैं। देश में 4 से 5 फीसदी लोगों को इस समस्या का सामना करना पड़ता हैं। इनमें से 5 से 8 फीसदी लोग राजस्थान व गुजरात के शामिल हैं। भारत में अकसर लोगों में इस त्वचा रोग को लेकर परेशानी देखने को मिलती हैं। आज 25 जून को विटिलिगो दिवस के तौर पर पर मनाया जाता है, ताकि लोगों के मन में इसे लेकर आ रहे अलग अलग धारणाओं को तोड़ा जा सकें।
बीमारी नहीं ऑटो इम्यून सिंड्रोम हैं
विटिलिगो यानि की सफेद को ल्य़ूकोडर्मा का रुप कहा जाता है, यह एक तरह का ऑटोइम्यून सिंड्रोम हैं। इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करती जिससे कि त्वचा पर सफेद धब्बे हो जाते हैं। यह शरीर में मेलेनोसाइट्स के परिणामस्वरुप होते हैं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। यह समस्या होठों और हाथों पर, हाथ-पैर और चेहरे पर, फोकल या शरीर के कई हिस्सों पर दाग के रूप में सामने आती है।
ल्यूकोस्किन दवा के रुम में मिली सफलता
मधुमेह के लिए बीजीआर-34 के बाद अब सफेद दाग को लेकर ल्यूकोस्किन दवा के रूप में सरकार को बड़ी कामयाबी मिली है। रक्षा वैज्ञानिकों की इस खोज ने न सिर्फ चिकित्सा को नई दिशा दी, बल्कि शोध करने वाले रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिक डॉ. हेमंत पांडे को विज्ञान पुरुस्कार से सम्मानित भी किया है। अब तक 1 लाख मरीजों में सफल परिणाम मिलने के बाद अब सरकार ग्रामीण अंचलों में इसे ले जाने की तैयारी कर रही हैं। इस दवाई के लिए हिमाचल की करीब एक दर्जन जड़ी बूटियों पर रिसर्च किया गया हैं। ल्यूकोस्किन मलहम और मुंह से ली जाने वाली ओरल लिक्विड दोनों ही स्वरूप में उपलब्ध है। इसे डॉक्टर की निगरानी में लेना चाहिए। इसके साथ ही इसके रोगी को टाइट कपड़े नहीं पहने चाहिए साथ ही रबड़ व कैमिकल से दूर रहना चाहिए।
तोड़ने चाहिए मिथ
सफेद धाग को लेकर भारत के विभिन्न लोगों के बीच कई तरह के मिथ बने हुए, जिन्हें तोड़ने की जरुरत है। सबसे बड़ा मिथ खट्टी चीज न खाना और मछली खाने के बाद दूध न पीने को तोड़ना चाहिए। इसके साथ ही लोग इसे कुष्ठ का रोग समझते है जो कि यह बिल्कूल भी नहीं हैं। इसे लेकर खाने के साथ जूड़े विभिन्न मिथकों को तोड़ कर लोगों को इसका अच्छे से इलाज करवाना चाहिए।
30 प्रतिशत केस में रहता है पारिवारिक इतिहास
डर्मेटोलॉजिस्ट्स का कहना है कि लगभग 30 पर्सेंट मामलों में विटिलिगों से प्रभावित लोगों का कारण उनके पारिवारिक इतिहास रह चुका हैं। उनसे पहले उनके परिवार में किसी न किसी को यह बीमारी होती हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति को 5 प्रतिशत तक यह बीमारी होने का खतरा रहता हैं। यह खास तौर पर बच्चों व गहरें रंग की त्वचा वाले लोगों में होने का खतरा होता हैं।